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- आस्था की ओर बढ़ते कदम में एक प्रोफैसर, एक रीडर, एक रिसर्च फैलो व सेवादार की सिफारिश की गई। वर्ष का मिसलेनियस ५०,००० खर्चने की सिफारिश की गई थी। हमें केस की एक प्रति दी गई जिसे हमने शिक्षा मंत्री श्री गुरमेल सिंह से सिफारिश करने का डी. पी.आई पंजाब को पहुंचा दिया। यूनिवर्सिटी के प्रारूप को यथा रूप मंजूरी मिल गई। पर यह कार्य निर्वाण शताब्दी के वाद हुआ।
' जैन चेयर की स्थापना व समारोह
आखिरकार जैन चेयर की मंजूरी मिल गई। फिर __ आया किसी योग्य व्यक्ति की नियुक्ति का प्रश्न। समाचार
पत्रों में प्रोफैसर की नौकरी के लिए विज्ञापन दिया गया। लम्बी तलाश की गई। विद्वानों से संपर्क किया गया। इस विज्ञापन के आधार पर मात्र ३ नाम आए। पर पधारे २ महानुभाव, पर इस संदर्भ में एक बात और कहनी है। कि यहां के उप-कुलपति जर्मन गए हुए थे, वहां उन्होंने एक जर्मन प्रोफैसर को जैन प्रोफैसर की भारत में नियुक्ति की वात की थी। यह प्रोफैसर थे डा० कलासि हुन जो जैन धर्म दर्शन, तत्व के महान ज्ञाता थे। उनके ज्यादा शिष्य उनके देश के जर्मन लोग थे। यह लोग प्राकृत भाषा को जानने के लिए जैन धर्म को पढ़ते हैं, उनके शिष्यों में से एक गुजरात का भारतीय डा० वी.वी. भट्ट थे। डा० कलास ब्रुन ने उनकी योग्यता की प्रशंसा करने हुए अंतर्राष्ट्रीयि लेखक वताया। डा० भट्ट भी इसी इंटरव्यू में आ गए। दूसरे सज्जन थे डा. के. रिषभ चन्द्र। डा० भट्ट की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। वह जर्मन, फँच, हिन्दी, गुजराती, संस्कृत, अंग्रेजी, प्राकृत भाषा के महान विद्वान भी थे। अंतर्राष्ट्रीय
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