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आस्था की ओर बढ़ते कदम
हमें सेठ भोज राज जैन बठिण्डा व श्री संत कुमार जैन फरीदकोट मिले।
उन पदों को पाने का समय था । सब से बडा पद खाली था। पर इस की पूर्ति जल्दी ही हो गई कुछ दिनों बाद मुझे पटियाला जाने का अवसर प्राप्त हुए स्व. डा एल. एम. जोशी के आवास पर ठहरे थे। सुबह उन्हें बठिण्डा लेकर के जाना था। उस दिन आचार्य आत्मा राम जी का जन्म दिन था । हमें प्रथम श्री जोशी के दर्शनों का लाभ मिला। वैसे मेरा धर्मभ्राता इन से पूरी तरह परिचत था । वह श्रमण संस्कृति का महान इतिहासकार थे। उन्होंने पंजाबी यूनिवर्सिटी में जैन चेयर खुलवाने में अमूल्य सहयोग दिया था। हम दिनों वठिण्डा में नव निर्मित जैन स्थानक में एक दिन पहले पहुंचे। डा. जोशी और हम तीनों के साथ एक महात्मा और पधारे थे। उनका नाम था श्री कृष्णाचन्द्राचार्य । सफेद वेशभूषा, गौर वर्ण, वृद्धावस्था का यह योगी श्री जिनेन्द्र गुरूकुल पंचकूला के संस्थापक स्वामी धनीराम जी महाराज के शिष्य थे। दोनों मालेरकोटला आए हुए साधु सम्मेलन में संयम हट लिए त्यागमूर्ति गुरूकुल में बच्चों को जैन संस्कार दिलाये जा सके। वह बहुत विद्वान आचार्य थे। उन्होंने श्री पार्श्वनाथ जैन विद्याश्रम हिन्दू यूनिवर्सिटी वाराणसी में पढ़ाया था। वह वहां से प्रकाशित होने वाले " श्रमण पत्रिका" के संपादक थे । अनकी चर्या जैन साधु जैसी थी। उन्होंने मुखवस्त्रिका, रजोहरण का त्याग गुरूकुल के लिए स्व. आचार्य आत्मा राम जी महाराज की आज्ञा से मालेरकोटला में हुए साधु सम्मेलन में किया था। इन्हें जंगल में एक भक्त ने विशाल भू-खण्ड प्रदान किया। वहां पांच कूले (नाले) बहते थे। उन्होंने इस स्थान को पंचकूला नाम दिया। विशाल आकर्षित सरस्वती भवन का निर्माण उनकी देन है। ऐसे भव्य आत्मा के दर्शन
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