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________________ आस्था की ओर बढ़ते कदम प्रकरण - १ मानव जीवन के चार दुर्लभ अंग संसार का अर्थ है - जन्म मरण की परम्परा। जन्म से बुढापे तक की यात्रा का नाम जीवन है। जन्म जीवन का प्रारम्भ है, अंत नहीं। इस जन्म से पहले कितने जन्म हुए, कोई नहीं जानता भविष्य में कितने जन्म होंगे, इस बात को सवर्ड परमात्मा ही जानते हैं। जीवात्मा कर्म बंधन में फंसी अनंतकाल से जन्म-मरण की परम्परा में चक्कर काट रही है। कंब जन्म मरण की कर्म परम्परा का अंत होगा, कब जीवात्मा अपने विशुद्ध स्वरूप सिद्ध अवस्था को प्राप्त करेगी, यह कथन सर्वज्ञ अरिहंतों के अतिरिक्त कोई नहीं जानता है। यह आत्मकों से बंधा है। जीव कमों का कर्ता भोगता है। दुःख-सुख, स्वर्ग-नरक सब का कारण जीव के पूर्व कृत्य कर्म हैं। जीवन की यात्रा कर्म की यात्रा है। प्राचीन काल से ही मनुष्य के मन में दुःख-सुख का कारण जानने की इच्छा बलवती रही है। विभिन्न धर्म के महापुरूषों ने प्राचीन काल से ही जन्म, मरण, आत्मा, परमात्मा, जीव, अजीव के संबंध में अपना चिंतन प्रदान किया है यह चिंतन ही जगत की उत्पति का कारण बना है। कोई भी चिंतन तब तक सत्य नहीं होता, जब तक उसे अनुभव की कसौटी पर परखा न जाए। यह चिंतन जब खरा उतरता है, तब यही शाश्वत सत्य कहलाता है। चिंतन को अनुभवी भूमिका से गुजरना पड़ता है। जब हम किसी सत्य को हर पक्ष से परखते हैं : तव वह बात आत्म ज्ञान बन जाती है। मेरे पास स्वयं को परखने की
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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