________________
सम्पादकीय
आस्था की ओर बढ़ते कदम एक ऐसी कालजयी कृति है जिस में मेरे धर्मभ्राता, स्वनामधन्य, श्रमणोपासक श्री पुरूषोत्तम जैन मंडी गोबिन्दगढ़ ने धर्म के प्रति आस्था के विभिन्न आयामों का सुन्दर व सरल भाषा में चित्रण किया है । मेरा यह परम सौभाग्य है कि मुझे श्री पुरूषोत्तम जैन जी की डायरीयों का सम्पादन करने का शुभ अवसर मिला । इस के लिए मैं अपने धर्मभ्राता का ऋणी हूं !
प्रस्तुत कृति धर्म के प्रति आस्था का ऐसा गुलदस्ता है जिस में जैन धर्म के इतिहास, परम्परा, प्रसिद्ध आचार्य, साधु, साध् वीयों से भेंट, पंजाबी विद्वानों से भेंट, सस्मरण व तीर्थ यात्राओं का सुन्दर भाषा में वर्णन किया है। वैसे ये डायरीयां किसी सम्पादन की . मोहताज नहीं, पर अपने धर्मभ्राता की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए मैंने अपने कर्तव्य को यथा शक्ति निभाने का प्रयत्न किया है । प्रस्तुत कृति को मैं अपने धर्मभ्राता श्री पुरूषोत्तम जैन जी भेंट करते ' हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है।
इस कृति के प्रकाशन में श्री चरणजीत सिंह, ओमेगा कम्पयूटर, सामने प्रेम लता हास्पीटल, मालेरकोटला का हृदय से आभारी हूं कि उन्होंने कठोर श्रम का परिचय देते हुए मुझे सहयोग दिया । इस कृति में जो भी पाठकों को त्रुटि नजर आए उसके लिए सम्पादक होने के नाते मैं क्षमा याचना करता हूं। मैं इस कृति के प्रकाशन के लिए २६वीं महावीर जन्म कल्याण शताब्दी संयोजिका समिति पंजाब का भी आभार प्रकट करता हूं जिन्होंने इस कृति को प्रकाशित करके पाठकों से मेरे धर्म भ्राता को रू-ब-रू होने का अवसर प्रदान किया ।
समर्पण दिवस
३१-०३-२००३
शुभ चिन्तक
रविन्द्र जैन