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-आस्था की ओर बढ़ते कदम प्रेक्षा, ध्यान, जीवन विज्ञान पर की जा सकती है।
आचार्य श्री तुलसी जी महान राष्ट्र भक्त थे। राष्ट्र के सामने कोई समस्या आई तो उन्होंने सरकार का साथ दिया। सभी राजनैतिक दल आचार्य श्री को जैन धर्म का सर्वमान्य नेता मानती थी। सभी सरकारें उनकी बात अणुव्रत के माध्यम से सुनती थीं। उन्हें अपना महान नेता मानकर उनके आदशों पर चलने का प्रयत्न करती । उनका जीवन अभय का जीता जागता प्रमाण है। वह कितने कष्ट, पीड़ा आए, डरे नहीं। मुझे इस के बाद भारत के विभिन्न भागों में उनके दर्शन करने का लाभ सपरिवार मिला। अंतिम समय उनके मृत्यु अवसर पर सारा संसार इकट्ठा हुआ। आचार्य श्री तुलसी की प्रेरणा से अणुव्रत अवार्ड स्थापित हुआ। मेरे जीवन में हर समय उनका आशीर्वाद रहा। ऐसा धर्म गुरू परम दुर्लभ है। वह मेरी आस्था का आधार थे।
आचार्य तुलसी भारत की कुछ मानी हुई हतियों में से एक थे। उन्होंने अपने जीवन में हिन्दी, राजस्थानी, संस्कृत, प्राकृत भाषा में बहुत साहित्य रचा। जैन आगम वाचने के वह प्रमुख थे। भारत के पूर्व राष्ट्रपति व प्रसिद्ध विद्वान सर्वपल्ली डा० राधा कृष्ण ने उन्हें भारत की कुछ हस्तीयों में से एक गिना, जिन से वह प्रभावित थे। भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें भारत ज्योति पद से अलंकृत किया।
आप से पहले तेरापंथ सम्प्रदाय एक पिछड़ा सम्प्रदाय था। विद्या का अभाव था। आचार्य श्री आगमों के मर्मज्ञ की एक श्रेणी खड़ी की। व्याकरण, कोष जैन विश्वकोश पर कार्य, शुरू हुआ जैन शोध को बढावा देने के लिए जैन विद्या पर सम्मेलन होने लगे। इस सम्मेलनों में देशों विदेशों के विद्वानों के अतिरिक्त उनके शिष्य भी भाग लेते थे।
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