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-आस्था की ओर बढ़ते कदम संसार में कुछ न कुछ प्रमाणिक कार्य करना चाहिए। मेरी दृष्टि में सब से महान लेखक होता है जो कभी नहीं मरता। वक्ता समय के साथ बीत जाता है। मेरी दृष्टि में लेखक संसार में अजर अमर है। समय भी लेखक को न कभी मिटा सका है न मिटा सकता है।"
यह स्वर्णिम वाक्य मेरे जीवन में क्रांन्तिकारी वाक्य थे जिन्हें मैं किसी ग्रंथ से कम की संज्ञा नहीं देता। आचार्य तुलसी के वह वाक्य हमें साहित्य की रचना का प्रेरणा स्त्रोत हैं। संसार में कुछ बातें ऐसी होती हैं जो आत्मा पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं। आचार्य तुलसी से भेंटवार्ता मेरे जीवन में अमूल्य निधि है। जहां उन्होंने हमें साहित्य लिखने का आशीर्वाद दिया, वहां उन्होंने इस मीटिंग में बुला कर समाजिक कार्य करने का सौभाग्य प्रदान किया।
दोपहर को अखिल भारतीय श्री श्वेतान्वर तेरापंथी जैन महासभा कलकता की मीटिंग आचार्य श्री के सान्निध्य में सम्पन्न हुई। जिस में आचार्य श्री ने समस्त तेरापंथीयों को दूसरे सम्प्रदायों से मिल कर, हर राज्य में समिति गठित करने की प्रेरणा दी। उनका दूसरा रूप हमें मीटिंग में देखने को मिला, जब उन्होंने जैन एकता की बात को ध्यान में रखकर २५००वां महावीर निर्वाण शताब्दी मनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने इस बात का प्रमाण स्वयं दिया, जब उन्होंने देहली के अणुव्रत भवन को २५००वां महावीर निर्वाण शताब्दी समिति का कार्यालय बना दिया। आचार्य श्री ने २५००वां महावीर शताव्दी पर जैन समाज को एक अद्भुत तोहफा "जैन विश्वभारती लाढ़D" के नाम से दिया। समस्त भारत में यही एक मात्र सर्वमान्य सम्प्रदाय संस्थान है जिसे यू.जी.सी. ने विश्वविद्यालय का दर्जा दिया है। अब इस विश्वविद्यालय से बी.ए., एम.ए., पी.एच.डी. तक जैन धर्म,
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