________________
आस्था की ओर बढ़ते कदम
जिस का वर्णन मैंने लाइनुं यात्रा में कर दिया है। मुझे अंकोला जाने के लिए उदयपूर जाना पड़ा। उदयपूर भारत का पैरिस है । इसे झीलों का नगर भी कहा जाता है। झील, महलों की प्रसिद्धि के कारण उदयपूर पर्यटन स्थल है। उदयपूर कोई जैन तीर्थ नहीं। पर स्थानक वासी श्रमण संघ के तृतीय पट्टधर आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि की यह जन्म, दीक्षा व आचार्य पद स्थली है । यह शास्त्री सर्कल में श्री तारक जैन ग्रंथालय में आचार्य श्री के सभी प्रकाशन उपलब्ध होते हैं। आचार्य श्री व उनके पूर्व आचार्य का यह प्रचार स्थल है। उदयपूर में मैं एक रात्रि रुका। यहां झील जल महल दर्शनीय हैं
फिर अगले मुनि श्री जय चन्द्र जी महाराज के दर्शन करने के लिए अंकोला पहुंचा । भव्य गांव में मुनि श्री के दर्शन वन्दना का लाभ मिला। उनके साथ मुनि श्री वध मान से जुड़ी स्मृतियों को सांझा किया। अब मुझे जैन धर्म की शिक्षा देने वाले आप ही हैं। कुछ मन की सान्तवना मिली। गुरुदेव ने परिजनों का हाल पूछा ।
एक रात्रि अंकोला ठहरे। फिर मुझे बताया गया कि पास ही ऋषभदेव केशरीया जी तीर्थ है। मैंने अंकोला से चल कर इस तीर्थ की ओर प्रस्थान किया ।
श्री केशरीया जी :
यह तीर्थ उदयपूर से ६६ किलोमीटर की दूरी पर है। यह मूल नायक आदिश्वर भगवान हैं। जिसे स्थानीय भील काला वावा कहते हैं । इस मन्दिर को जैन व हिन्दू दोनों मानते हैं। मेवाड़ के राणा यहां हमेशा आते रहते थे। राणा फतहसिंह जी ने प्रभु के लिए रत्नों जडित आंगी भेंट की थी। यहां प्रचूर मात्रा में केशर चठाया जाता है। इस लिए इस
494.
•