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यह अंतिम वर्धमान तीर्थंकर होगा ।"
आस्था की ओर बढ़ते कदम
अपने भविष्य को सुन मारिची को अहं पैदा हो
गया। इसी अहंम के कारण उसे तीर्थंकर परम्पराओं के विपरी कुल में जन्म लेना पड़ा। यह स्थान तीर्थकर परम्परा के वर्णन से भरा पड़ा है। मैंने सभी जैन मन्दिरों में पूजा अर्चना की।
फिर राम मन्दिर हुनमानगढ़ी के दर्शन किए। फिर सयु नदी के पावन तट पर स्नान कर वापस गोविन्दगढ़
आ गया।
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