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-आस्था की ओर बढ़ते कदम
शत्रुजय तीर्थ पालिताना .
शत्रुजय तीर्थ जैनों का प्रमुख सिद्ध क्षेत्र है। यह समरत जैन समाज का तीर्थ है। श्वेताम्बर व दिगम्बर दोनों इसे सिद्ध क्षेत्र मानते हैं। इस तीर्थ पर भगवान ऋपभदेव
६ वार पधारे थे तव से सभी तीर्थकरों के समोसरण यहां लगे। करोडों मुनियों व साध्वीयों ने इस क्षेत्र से मोक्ष पधारे। श्री अतंकृतदशांग में भगवान नेमिनाथ के अनेकों मुनियों व साध्वीयां इस पर्वत से मोक्ष गए। इस तीर्थ का इतिहास बहुत प्राचीन है। चाहे इस तीर्थ पर किसी तीर्थकर का कोई कल्याणक नहीं हुआ पर यहां से करोडों भव्य आत्माओं ने तप कर मोक्ष प्राप्त किया। इस पर्वत का कण कण पवित्र है। इस लिए इसे विमलाचल पर्वत कहते हैं। कर्म रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त होने के कारण इस का नाम शत्रुजय पडा। सिद्ध परमात्मा की मोक्ष भूमि होने के कारण इसे सिद्धांचल पर्वत भी कहा जाता है। इस पर्वत का वर्णन ग्रंथ शत्रुजय महात्मय में मिलता है। इस ग्रंथ के अनुसार इन सव तीथों में यह तीर्थ पापनाशक, मुक्तिदायक कहा गया है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान आदि शत्रुओं पर विजय पाई। अनेकों भव्यात्माओं ने मोक्ष रूपी लक्ष्मी का वरण किया। इसी कारण इस पर्वत की हर चोटी पर जैन मन्दिर स्थापित किया गया है! हर जैन सुवह जव देवदर्शन को जाता है तो यह मंत्र पढ़ता है।
नमस्कार मंत्र समोः, शत्रुजय समः गिरिः वीतरागों समः देवो, वा भूतो न भविष्यती
अर्थात् - नमस्कार मंत्र से बढ़ कर कोई मंत्र नहीं, शत्रुजय गिरि से वडा कोई महान तीर्थ नहीं। वीतराग
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