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- = રૂાસ્યા હી વોર હ૮મ के प्रति समर्पण का भाव जागता है। साथ में श्वेताम्बर जैन साहित्य को लिपिवद्ध करने वाले आचार्य देवार्धिगणि को वन्दना करने को आत्मा लालायित हो जाती है।
मैंने भी इस इतिहासक वल्लभी तीर्थ की यात्रा की, तो मेरे मन में वह सारे भाव जागृत हुए जो एक लेखक के मन में जागते हैं। आचार्य श्री ने अपनी कलम से प्रभु महावीर के उपदेशों को मूलरूप में सुरक्षित करने की चेष्टा की है।
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