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ગ્રામ્યા છી ઝોર કહો છંદ્રમ धर्म का आगमन प्रभु महावीर के ५०० साल बाद आगमन हो गया था। आचार्य भद्रवाहु के समय जैन संघ दो भागों में विभक्त हो गया था । एक राजस्थान, महाराष्ट्र व गुजरात में फैल गया । यह सम्प्रदाय श्वेताम्वर कहलाया । दिगम्बर सम्प्रदाय कर्नाटक, तामिलनाडू व मध्य प्रदेश में फैला । गुजरात का इतिहास दरअसल जैन इतिहास है। कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द सूरि जी महाराज, दादा जिन दत्त व आचार्य यशोविजय के नाम प्रसिद्ध हैं। यहां आचार्य हेमचन्द की प्रेरणा से परमार्हत राजा कुमारपाल को जैन धर्म में दीक्षित करके जैन धर्म का प्रचार करवाया और उसे राज्य धर्म का दर्जा दिलाया।
अहमदावाद से ८ किलोमीटर की दूरी पर सरखेज गांव में प्रभु वासुपूज्य का मन्दिर है। यहां पर श्री पद्यावली माता श्री चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमाएं भव्य रूप में स्थापित हैं। यह तीर्थ दर्शनीय व चमत्कारी है। गुजरात में वस्तुपात, तेजपाल जैसे मंत्री ने जैन कला को प्रोत्साहित किया। अहमदाबाद में जैनों के अतिरिक्त हिन्दु व मुसलमानों का धर्म स्थान विपूल मात्रा में है। यहां ही जनसंख्या वैष्णव है। गुजरात ने अपनी कला संस्कृति को जीवंत रखा है। जैन इतिहास का काफी वर्णन गुजरात से संबंधित है। यहां अमूर्ति पूजक सम्प्रदाय के संस्थापक लोकाशाह हुए । ऋषि सम्प्रदाय के प्रथम ऋषि लव जी भी सूरत के निवासी थे। इस तरह अनेकों इतिहासक घटनाओं का केन्द्र यह गुजरात है । इस सदी का महान दार्शनिक श्री रायचन्द भी गुजरात के थे जिन्होंने स्वय प्रमाणिक जीवन जीया। उनके प्रभाव से मोहनदास कर्मचन्द गांधी का जीवन वदल गया। भारतीय राजनीति के अनेकों नक्षत्रों को गुजरात ने जन्म दिया है। आज भी यहां ड्राई स्टेट है। गुजरात भारत
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