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DRथा की ओर बढ़ते कलम पार्श्वनाथ के प्रति भक्ति का प्रतीक यह मन्दिर कला प्रेमीयों का तीर्थ है। सूर्यदेव का मन्दिर एक अलग पहाड़ी पर है। इस का निर्माण कव और कैसे हुआ? इस का पता नहीं चलता ? इसके निर्माता के उल्लेख भी नहीं मिलता।
राणकपूर के मन्दिर पाषाण की मूर्त कल्पना है। इतिहास, कला व प्राकृतिक परिवेशं इस स्थान को भारतीय पर्यटन एवं आराधना रथलों का सिन्नर सावित करते हैं।
अमेरिका के विश्व मान्य विद्वान लुइ जुहान के अनुसार , स्थापत्य कला एवं आध्यात्मिकता के यह आश्चर्यजनक अभिव्यक्ति है।
- राणकपूर में एक छोटी सी मार्किट मन्दिर के वाहर है जहां दैनिक उपयोगिता की हर वस्तु मिल जाती है। वह मन्दिर का प्रबंध आनंद जी कल्पम जी पेढ़ी के आधीन है। इसी पेढ़ी के आधीन धर्मशाला वनं हुई है। जहां यात्रीयों के रहने का सुन्दर प्रबंध है। पूजा करने वालों के लिए पूजा सामग्री हर समय उपलब्ध होती है। भोजनशालाा व रहने का उत्तम प्रबंध है। यह मन्दिर में एक ,खम्भा टेडा है। इस पर कलाकारी भी नहीं हुई।
एक वार प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी राणकपूर के मन्दिर देखने आई। वह मन्दिर को देख कर अत्यधिक प्रभावित हुई। उन्होंने टेढ़ा स्तम्भ देखा। उन्होंने यहां के प्रबन्धकों को कहा "यह स्तम्भ टेढ़ा क्यों है ? अगर आप कहें तो मैं फ्रांस के इंजिनीयरों को बुला कर इसे सीधा करवा दूंगी।''
प्रबंधकों ने वहां काम कर रहे शिल्पीयों से इस के बारे में विमर्श किया। शिल्पीयों ने कहा "यह स्तम्भ हमारे वुजुगों ने जान कर टेढ़ा स्थापित किया है। इस का कारण यह है कि वह चाहते थे कि शिल्प कला के इस केन्द्र को
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