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- સાચ્ચા હી વોર હવે તમા निर्माण कार्य को रोकने का कारण पूछा तो शिल्पीयों ने कहा "हम ऐसे श्रावक के यहां काम नहीं कर सकते, जो घी में से मक्खी निकाल कर, उससे लगे घी को मूंछों को लगाता है। ऐसा व्यक्ति इतने बड़े भव्य कार्य को कैसे करेंगे। मन्दिर में तो करोडों रूपए का द्रव्य लगना है।
सेट ने शिल्पीयों से प्रार्थना की "हे शिल्पीयो ! मैंने मक्खी की जान बचा कर कृपणता का प्रमाण नहीं दिया, यह कार्य तो मेरे अहिंसा अणुव्रत का प्रमाण है। वाकी घी का अपव्यय करना कहां ठीक है, मैंने तो घी जैसे द्रव्य को पवित्र मान कर अपनी मूंछों पर लगाया है। सो आप शीघ्र कार्य शुरू करें। जल्द ही प्रभु ऋषभदेव को स्थापित करो। आप की मजदूरी रोजाना दी जाएगी। आप प्रभु का नाम लेकर कार्य शुरू करो। मुझे मेरे स्वप्नों की जिनालय स्थापित कर जिनशासन की प्रभावना आप की सहायता से करनी है।" सेट की बात सुन कर मन्दिर का कार्य शुरू किया।
सेट की वात कारीगरों व दीपा को समझ आ चुकी थी। पास वाले पहाड की खान से पत्थर मंगवाया गया। संगमरमर का पांच मंजिला कलात्मक भवन तैयार होने लगा। इसी बीच भगवान ऋषभदेव की चतुमुखी प्रतिमा स्थापित करने की योजना बनी। सारा मंदिर पू वा में वन कर तैयार हो गया। अंत मंदिर संवत १४९६ में आचार्य सोम सुन्दर जी महाराज के कर कमलों से भव्य मंदिर की प्रतिष्टा करवाई।
राणकपूर जैन धर्म की श्रद्धा स्थली और भारतीय शिल्प का अनूठा उदाहरण है। इस विशाल मन्दिर के हर इंच पर कला का निखार है। यह तीर्थ विदेशी आक्रमणों के वावजूद सुरक्षित रहा। प्राकृतिक सौंदर्य के वीच स्थापित यह राणकपुर तीर्थ भारतीय शिल्प का नाभि स्थल है।
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