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आस्था की ओर बढ़ते कदम
गया । भक्त ने लाख कोशिश की, रथ न चला । भक्त ने वहां विश्राम किया, रात्रि को देव ने पुण्य आदेश दिया, मुझे यहां स्थापित कर दो मुझे यहां कोई खतरा नहीं, यहां मेरी पूजा अर्चना करो, सबकी मनोकामना पूरी हो जायेगी ।"
भक्त ने उसी जंगल में भव्य मन्दिर का निर्माण किया । यहां धर्मशाला की धीरे-धीरे महानता बढ़ने लगी । भक्तजनों का तांता देखकर अनेक मन्दिर व धर्मशालाएं यहां वनां । इस प्रतिमा को लोगों ने श्रीनाथ का नाम दिया, तव से नाथद्वारा के नाम से प्रसिद्ध है । यह अजमर - उदयपुर मार्ग पर स्थित है । नाथद्वारा से पहले किशनगंज, व्यावर जैसे जैन नगर आते हैं । यहां हर शहर की धर्मशालाएं बनी हैं । पर यहां होटलों का अभाव है । मूल प्रतिमा श्यामवर्ण की है । यह प्रतिमा भव्य, प्राचीन व दर्शनीय है । हर सुवह भक्तों की लम्बी-लम्बी लाइनें नाथद्वारा के मन्दिरों में लग जाती हैं । बहुत लम्बे इंतजार के बाद प्रतिमा के पुण्य दर्शन होते हैं । हम अजमेर से रात्रि को वस पर सवार हुए । डीलक्स बस सेवा सारी रात्रि चलती है । सुबह चार बजे हम नाथद्वारा की पवित्र धरती पर उतरे । वह वस वाईपास से जाती थी । जिसका हमें पता नहीं था, रात्रि काफी थी, कोई रिक्शा भी उपलब्ध भी नहीं था । करीव तीन कि.मी. घूमकर हम नाथद्वारा मन्दिर में पहुंचे । वहां लम्बी कतारें लगी थीं । लोग धर्मशाला से स्नान कर तैयार होकर जा रहे थे । हम भी उन भक्तों में शामिल हो गये । एक घण्टा इंतजार करने के बाद हमारी वारी आई । फिर एक धर्मशाला में जाकर स्नान किया । फिर नाथद्वारा के मन्दिर देखे, सुवह का नाश्ता किया । फिर आगे जाने का विचार बनाने लगे । हमें राणकपुर जाना था, पर रास्ते में जो भी दर्शनीय स्थल
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