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आस्था की ओर बढ़ते कदम
सूर्य उदय के समय सूर्य की सनिगध किरणों से हवामहल का सौन्दर्य और अभिभूत कर देता है । इसका नजारा देखने योग्य होता है ।
शहर के दक्षिण रामनिवास उद्यान में जयपुर का जादूघर है । चिड़ियाघर इस स्थान पर है, यह खाई से घिरा हुआ है, यहां सिंह, वाघ, स्वतन्त्र घूमते हैं । जयपुर से ६ कि.मी. दूर १७३४ में जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित नाहरगढ़ या सुन्दरगढ़ दुर्ग है । जयपुर के दक्षिण से आठ किलोमीटर की दूरी पर सिसोदिया रानी का बाग है
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मानसिंह की तृतीया पत्नी गायत्री देवी द्वारा निर्मित मोती का महल मोतीडुंगरी काफी ख्याति प्राप्त है । शहर से १६ कि.मी. दूर सांगनेर जैन तीर्थ है, जहां रत्नों से निर्मित जैन प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं । यह मन्दिर १५०० ई० से जैन मन्दिरों का समूह बना था । यह शहर खण्डर बन चुका है । वर्तमान में यहां १० जिनालय हैं । इनमें प्रमुख हैं मन्दिर संघी जी, मन्दिर अढ़ाई पेढ़ी जी तथा मन्दिर वधीचन्द्र जी । रानी के वाग के सामने निकट ही विद्याधर का वाग है । जयपुर का मूल आकर्षण शहर से ११ कि.मी. उत्तर पूर्व में जयपूर-दिल्ली रोड पर आमेट का किला है । राजपूत स्थापत्य का यह सुन्दर नमूना है, जिसका निर्माण १५६२ में राजा मानसिंह ने किया था । राजा मानसिंह की वहन जोधाबाई अकवर की पत्नी थी । उसी से सलीम पैदा हुआ था । इस विशाल किले की पूर्ति १०० साल में हुई थी । इसको सम्पूर्ण करने का श्रेय सर्वदा जयसिंह को है । इसकी चमक-दमक आज भी उसी तरह है ।
आमेट का दूसरा नाम कछवाहा अम्बर है । वह कछवाहा राजपूतों की प्राचीन राजधानी थी । राजपूत शैली में यहां महल अपनी चमक दमक हेतू प्रसिद्ध हैं । इन महलों
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