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आस्था की ओर बढ़ते कदम सर्वप्रथम सभी पारणा वालों का स्वागत मन्दिर कमेटी की ओर से होता है । फिर श्रेयांस कुमार वना व्यक्ति हर पारणे वाले को कुछ न कुछ प्रभावना के रूप में भेंट वांटता है । तपस्वी परस्पर तोहफों का आदान-प्रदान करते हैं । यहां मुनिजनों के उपदेश भी होते हैं । उनकी तपस्या का अनुमोदन होता है । भविष्य में तपस्या करने की प्रेरणा दी जाती है । तोहफे में सोने व चांदी के गहने, वस्त्र, नकदी,
पुस्तक, सिक्के भेंट किये जाते हैं । तपस्वी इन भेंट को आगे अपने रिश्तेदारों में वांट देते हैं । उस दिन हर तपस्वी कुछ न कुछ दान मन्दिर को करता है । हैसीयत के अनुसार प्रभावना वांटता है । जैन धर्म में तीर्थंकर गोत्र के वीस वोलों ( कारणों) में प्रभावना अंग भी एक है, जिसका अर्थ है धर्मप्रचार करना । धर्मप्रचार का कोई भी अंग हो उसे प्रभावना की श्रेणी में रखा जाता है । शास्त्र व मुनिराज हमें उपदेश देते हैं । यह प्रभावना अंग तीर्थकर गोत्र कर्म का कारण है ।
हम इस समारोह में हाजिरी दे रहे थे । यहां विशाल मंडप में एक तरफ शोभायमान थे। दूसरी ओर इक्षुरस तैयार हो रहा था । वहां जनसाधारण के लिये भी इक्षुरस उपलब्ध था । तपस्वियों के लिये यह व्यवस्था एक घंटे की थी । तपस्वियों का आधा दिन बीत चुका था । दो बजे के करीव पारणा आरम्भ हुआ । चांदी के छोटे-छोटे कलशों में इक्षुरस एक बड़े पात्र में डाला जा रहा था । इन कलशों के वारे में कहा जाता है कि भगवान ऋषभदेव ने १०८ कलशों से पारणा किया था । यही प्रक्रिया चांदी के कलश के रूप में दोहराई जाती है । १०८ छोटे कलश भरने से इस आधा किलो से कम ही रहता है | १०८ एक मांगलिक अंक है । वह नौ का प्रतीक है । ६ का अंक जैनधर्म में बहुत
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