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-रथा की ओर बढ़ते कदम हैं । इस जम्बूद्वीप में हजारों छोटी-बड़ी प्रतिमाएं हैं ।
इस परिसर में ध्यान मन्दिर में ही ध्यान किया जाता है । ध्यान चौवीस तीर्थकरों का ध्यान है, इस परिसर में बहुत जिन मंदिर है । जहां धातु व संगमरमर की प्रतिमाएं हैं । दीवार पर जैन धर्म से सम्बन्धित चित्रों को अलंकृत किया गया है।
एक कमल मन्दिर है, जो जलमंदिर में स्थापित है । एक संगमरमर पर कमलनुमा छत के अंदर प्रभु महावीर जी मूलनायक हैं । एक आर्ट गैलरी है । यहां प्रकाशन विभाग है, जहां से माता जी के सभी ग्रन्थ मिल सकते हैं । यहां माता जी का आश्रम भी है । इस भव्य परिसर में हजारों यात्री रोजाना आते हैं । तीर्थराज हस्तिनापुर की यात्रा
इस तीर्थ की प्रथम यात्रा मैंने उस समय की थी जव हम श्री महावीर जी गये थे, वापसी पर दिल्ली आये तो पता लगा कि अक्षय तृतीय का मूल शुभ अवसर है । एक वात मैं बता दूं कि मेरे धर्मभ्राता रवीन्द्र जैन १६७० में पहली बार इस तीर्थ पर आये थे, फिर हर वर्ष वरसी तप के समारोह में भाग लेते रहे हैं । १६४७ में नया हस्तिनापुर बनाया गया जिसे सरदार पटेल उत्तर प्रदेश की नई राजधानी बनाना चाहते थे । उन्होंने पाकिस्तान से आये शरणार्थियों को यहां मकान बनाकर दिये । परन्तु दुर्भाग्यवश प्रधानमंत्री श्री नेहरु की विरोधता से यह कार्य सम्पन्न न हो सका । श्री नेहरु लखनऊ को राजधानी वनाने के पक्ष में थे । हस्तिनापुर के गांव में व्याप्त पंजावी आवादी है । ज्यादा सिक्खों को यहां जमीनें मिली हैं, यह सारे गांव शरणार्थियों के हैं ।
हम दिल्ली से मेरट पहुंचे, शाम हो चुकी थी, यहां
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