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= વાસ્થા જી વોર વહો દ્રા “राजन् ! हमारे पशु तो कुछ खाते नहीं ।" राजा ने कहा, "क्या तुमने खाने के समय उनके मुंह से छिपकली खोल दी थी ?'
किसानों ने कहा, "हमें आपने वांधने को कहा था, खोलने को नहीं !"
राजा ने कहा, "जाओ पहले छिपकली खोलो ।" किसानों ने मुंह पर बंधी छिपकली खोल दी । पशुओं ने खाना शुरु कर दिया । इस पापकर्म का फल उन्हें इस जन्म में भोगना पड़ा ।
शारत्र कहते हैं कि यही राजा अगले जन्म में प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव वना, फिर उन्होंने गृह त्यागा, उनके साथ अनेकों राजा भी साधु वने । अधिकांश तप से डर कर भाग गये । प्रभु अकेले रह गये । भोजन की तलाश में हरितनापुर पहुंचे । श्रेयांस कुमार महल में बैठा नगर की शोभा देख रहा था । प्रभु को देखते ही उसे मन प्रभव ज्ञान हो गया । उसे याद आया कि पूर्वभव में वह भी एक श्रमण था । श्रमण को दान देने की विधि वाद आ गई । इस प्रकार दान देने के कारण वह इस युग का प्रथम दानी कहलाया । राजा श्रेयांस कुमार भगवान ऋषभदेव का पोत्र व तक्षशिला नरेश वाहुवली का पुत्र था ।
प्रभु ऋषभदेव की याद में आज भी लोग वरसी तप करते हैं । जिस स्थान पर प्रभु का पारना हुआ था, वहां आते हैं । यह दिन अक्षय तृतीया था । यह पारणा इक्षुरस स हुआ था, इसी कारण लोग भी इक्षुरस से पारना करते हैं, जैसे प्रभु ऋपभदेव का पारना पोत्र द्वारा सम्पन्न हुआ, उसी तरह वरसी तप पर आये लोग पोत्र से पारना करवाते हैं । जहां प्रभु ऋषभ को दान मिला था, उस स्थान पर एक प्राचीन स्तूप है । हस्तिनापुर में १६वें तीर्थकर प्रभु शांतिनाथ
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