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-रथा की ओर दो कदा हैं । शारीरिक कष्टमुक्ति के लिये यहां स्थानीय लोग भी आते हैं । यह तीर्थ में मेरी आरथा जुड़ी है । हमारी हस्तिनापूर यात्रा :
___ हस्तिनापुर का नाम आते ही महाभारत का चित्र दिमाग में आ जाता है । भगवान ऋषभदेव के एक पुत्र ने इस नगर का निर्माण किया था । महाभारत के अनुसार यह कौरवों की राजधानी थी । यह कुरु देश में पड़ती थी । इस नगर का इतिहास बहुत गौरवमय है । यहां प्रथम तीर्थकर भगवान ऋपभदेव को एक वर्ष घूमने के वाद आहा' मिला था । इस दान का लान उनके पोत्रे श्रेयांस कुमार ने लिया । प्रभु एक वर्ष तक घूमते रहे । कोई उन्हें कन्या भेंट करता, कोई हाथी और कोई घोड़ा, पर भोजन कोई न देता क्योंकि लोग दानविधि नहीं जानते थे । यह भगवान के पूर्व जन्म के अशुभ फल का उदय था । भोजन न मिलने के पीछे एक दिलचस्प कहानी है । पूर्वभव कथा :
___ एक वार प्रभु का जन्म राजा के रूप में हुआ, उस समय सभ्यता इतनी विकसित नहीं थी । गांवों से किसान इकट्ठे होकर आये, राजा से कहने लगे, "प्रभु हमारे पशु फसल खा जाते हैं । खेतों से कुछ नहीं निकलता, कोई समाधान करें ताकि हमारी खेती वची रहे ।".
राजा ने कहा, "तुम उनके मुंह पर छिपकली वांध दो, तुम्हारी फसल की रक्षा हो जायेगी ।" ।
__ ग्रामीणों ने अपने पशुओं के मुंह पर छिपकली वांध दी, भोले किसानों ने उन पशुओं के आगे दाना पानी रखा, मूंह वंधा होने के कारण वह कुछ न खा सके ।
अगली सुवह किसान फिर आये और कहने लगे,
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