________________
आस्था की ओर बढ़ते कदम
श्री तिजारातीर्थ :
यह तीर्थ दिल्ली से ११७ कि.मी. दूर है । दिल्ली, रिवाड़ी, अलवर, जयपुर, महावीर जी से यह सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है । यहां हर रविवार को मेला लगता है । इसका नाम प्राचीन ग्रन्थों में देहर है । यह १६५६ की श्रावण शुक्ला संवत २०१३ में भगवान चन्द्रप्रभु की श्वेतवर्ण की दिव्य चमत्कारी प्रतिमा भूगर्भ से प्राप्त हुई थी । यह अतिशय पूर्ण तीर्थ है । यहां लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है। यहां भव्य मन्दिर में समोसरण वनाया गया है । पास भव्य धर्मशाला वनी है । जहां से प्रभु चन्द्रप्रभु की प्रतिमा प्राप्त हुई थी । वहां चरण छतरी बनी हुई है । मन्दिर के सामने मान स्तम्भ है ।
यहां एक अन्य मन्दिर है, जो प्रभु पार्श्वनाथ को समर्पित है । इस मन्दिर में मनोज व सातिशय प्रतिमाएं विराजमान है । यहां ३०० कमरों की धर्मशाला है । सभी सुविधाओं से युक्त है 1
भगवान चन्द्रप्रभु की प्रतिमा का स्वप्न साहुशांति प्रसाद जी जैन को आया था । उसी स्थान पर यह भव्य मन्दिर वना है । इसी मन्दिर के दर्शन करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ । हम वस द्वारा गुड़गांव के मार्ग से तिजारा पहुंचे । तिजारा राजस्थान के अलवर जिले में पड़ता है । यह स्थान पत्थरों की खानों से भरा पड़ा है । यहां मूर्ति व पत्थर का व्यापार वहुत होता है। इस स्थान पर हम दोनों दोपहर के समय पहुंचे । मन्दिर में कुछ यात्री थे । मन्दिर के व्यवस्थापक ने हमें रुकने को कहा । हमारे पास समय का अभाव था । सर्वप्रथम मन्दिर के मान स्तम्भ को प्रणाम । प्रभु चन्द्रप्रभु की प्रतिमा एक सुन्दर वेदी में
किया
396