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आस्था की ओर बढ़ते कद
दिल्ली यात्रा - महरोली :
इस यात्रा में हमें वापसी पर देहली आना पड़ा, देहली तो कई वार आना होता रहता है, पर इस यात्रा में हमने आचार्य श्री सुशील कुमार जी महाराज के दर्शन व वन्दन का लाभ लिया । अव उनसे काफी परिचय हो चुका था । सो उनसे खुलकर ज्ञान चर्चा हुई । हमने उन्हें अपना सम्पूर्ण पंजावी साहित्य अमेरिका, कैनेडा में वांटने के लिये दिया । इन देशों में व्याप्त मात्रा में पंजावी हैं । यूनीवर्सिटियों में धर्म का अध्ययन होता है । एक वार हमें देहली के पास महरोली स्थित दादावाड़ी तीर्थ देखने का सौभाग्य प्रथम वार इस यात्रा में मिला । यह देहली का प्राचीन तीर्थ है, मुस्लमानों के आगमन से कुछ समय पहले देहली में दादा मणिधारी श्री जिनचन्द्र का स्वर्गवास हुआ था । वह मन्दिर जंगलों में है । इनकी समाधि चमत्कारी है । अब तो यहां विशाल धर्मशाला, भोजनशाला है । दादावाड़ी में भगवान ऋषभदेव का मन्दिर है ।
एक कृत्रिम जिनालय का समूह है जो शत्रुंजय तीर्थ की आकृति बनाने की सुन्दर चेष्टा की गई है । धरती पर शत्रुंजय तीर्थ को प्रदर्शित किया गया है । यह एक अच्छा उपक्रम है । जो शत्रुंजय महातीर्थ के दर्शन नहीं कर सकते । इस स्थान के दर्शन शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा की
प्रेरणा ले सकते हैं ।
हमारी तिजारा यात्रा :
हम इन तीर्थ यात्राओं के बाद खामोश बैठ गये थे, एक वार अचानक देहली जाना हुआ । हमारे पास खुला समय था । यह अवसर विश्व पंजावी सम्मेलन का था । हमें एक पुस्तक स्वः पूज्य प्रर्वतक श्री शांतिस्वरूप जी महाराज
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