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आस्था की ओर बढ़ते कदम
यहां विशाल मठ व अशोक स्तूप देखने योग्य है । भारत सरकार की वर्तमान सरकारी मोहर भी इसी स्थल के अशोक स्तूप से प्राप्त हुई थी, इस पर तीन शेर हैं । इस स्थान पर बौद्ध व जैन मन्दिरों का विशाल समूह व धर्मशालाएं है । वाराणसी पान, पांडे, घाट, ठग के लिये प्रसिद्ध है । मन्दिरों की गिनती करना कठिन है, मस्जिदें बहुत हैं | हिन्दू विश्वविद्यालय में श्री पार्श्वनाथ जैन शोध विद्यापीठ हैं । यहां अनेकों जैन शोध संस्थान प्राचीन काल से चले आ रहे हैं । दिगम्बर जैन समाज ने अनेकों गुरुकुल बनाये है। यहां संग्रहालय है, जहां विपुल मात्रा में पुरातत्व सामग्री मिलती है, यहां सिल्क का काम बहुत होता है । लोग मेहनती है । पान तो अधिक मात्रा में खाया जाता है । बाजार, गलीयां तंग हैं, सारा शहर गंगा के किनारे बसा है, हजारों घाट हैं। घाटों पर मन्दिर व धर्मशालायें हैं. - । घाट पाराणसी की कहान
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यह भूमि २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की जन्न भूमि है । प्रभु के पिता राजा अश्वसेन व माता वामादेवी थी । यह स्थान भेलुपुरी मुहल्ले में है । यहां प्रभु के चार कल्याणक हुए 1
इस स्थान से १.५ कि.मी. की दूरी पर गंगा नदी के तट पर जैन घाट है । स्टेशन से यह ४ कि.मी. दूर है, यह स्थान प्रभु सुपार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा है । वाराणसी से २३ कि.मी. दूर चन्द्रपुरी तीर्थ है जहां चन्द्रप्रभु भगवान के चार कल्याणक हुए थे ।
वाराणसी से ७ कि.मी. दूरी पर सारनाथ है । इसे सिंहपुरी कहते हैं । यहां भगवान श्रेयांस नाथ के चार कल्याणक हुए थे । सारनाथ भी श्रेयांसपुरी का अपभ्रंश लगता है ।
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