________________
- आस्था की ओर बढ़ते कदम वनानी शुरू की थी, जिसकी इजाजत आनंद जी कल्याण जी पेड़ी ने नहीं दी । समाज की बदकिस्मती है कि यहां सौ साल से श्वेताम्बर व दिगम्बर कानूनी अदालती लड़ाई लड़ते आ रहे हैं । जिसका समाज को काफी नुक्सान पहुंचा है । समाज का पैसा पानी की तरह बहा है । ... ___ भयंकर फिसलन व मिट्टी गिरने के कारण हम धीरेधीरे चल रहे थे । हम रात्रि में ८ बजे अपनी यात्रा सम्पन्न कर सके । फिर नीचे आकर पार्श्वनाथ पर्वत को प्रणाम किया । यह सिद्धभूमि व मोक्ष भूमि है, इसलिये हर जैन के लिये हर क्षण, हर पल इसको वन्दन करना जरूरी है । हम नीचे उतर चुके थे, अब हमारे शरीर में थकावट बहुत हो चुकी थी । २७ कि.मी. की पहाड़ी यात्रा भयंकर कठिनाईयों से भरी हुई थी, पर प्रभु पार्श्वनाथ व भोमिया जी की कृपा भक्तों पर ऐसी है कि संकट कभी आता नहीं । हमने एक हलवाई से प्रशाद खरीदा, भोमिया जी को धन्यवाद रूप में अर्पण किया । इतनी थकावट के बावजूद हमने साथ खुले मन्दिरों के दर्शन किये. फिर धर्मशाला में पहुंचे । हमारे मुनीम जी ने हमसे कहा, "श्रावक जी ! आपको यात्रा में काफी कठिनाई आई हेगी, हमें चिन्ता सताती रही ।" मैंने कहा, “समेदशिखर तो मोक्ष भूमि है, इसकी गोद में कोई कष्ट उपद्रव नहीं आता । वाकी देव, गुरु व धर्म की कृपा से हमें कोई कष्ट नहीं आया ।" .
पुनः हमने होटल में खाना बनवाया क्योंकि भोजनशाला बन्द हो चुकी थी । सूर्य उदय के पश्चात् किसी भी जैन तीर्थ पर भोजन की व्यवस्था नहीं है । ऐसा जैन धर्म का सख्त नियम है जिसे सारे मुनिराज श्रेष्ठ, श्रावक वर्ग जीवन भर पालन करता है । महाव्रतों के बाद छठा रात्रि भोजन परित्याग व्रत है, पर हन अभी श्रावक के व्रतों के धारक
360