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जल्दी प्रस्थान करो, यह पर्वत है, यहां जल्द अंधेरा हो जाता
हमने उसकी बात की ओर ध्यान दिया, उसकी बात सही धी । ज्यों-ज्यों हम नीचे उतर रहे थे, उतना भयंकर अंधेरा बढ़ रहा था, जंगल की शून्यता का अनुभव होने लगा, वर्षा के कारण कुछ फिसलन थी । पांवों कहीं रखते, जाता कहीं था । पांच-छ: बार मेरा धर्मभ्राता रवीन्द्र जैन फिसला, पर मैंने मौके पर उसे संभाला । फिर अंधेरा छा गया, हमें एक दूसरे को पहचानना मुश्किल हो गया । इस भयंकर जंगल में टॉर्च बाला लड़का हमें रास्ता दिखा रहा था । भयंकर जंगल में हम फंस चुके थे । हमारा आवाज का रिश्ता रह गया । इतना भयंकर अंधकार था कि इधर नीचे धर्मशाला वालों को हमारी कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई तो उन्होंने ६ व्यक्तियों को तीन गैस देकर रवाना किया । इस सघन जंगल में भगवान पार्श्वनाथ की जय ही हमारे काम
आई । जव हम थक जाते तो साथ वाला लड़का हमें . जय-जयकार करने को कहता । हम अभी सीतानाले की
ओर पहुंचे भी नहीं थे कि ६ व्यक्तियों का दल भगवान पार्श्वनाथ की जय-जय करते हुए हमें मिल गये । प्रभु पार्श्वनाथ ने अपने भक्तों की सहायता के लिये यह चमत्कार किया । उन व्यक्तियों ने पहले हनारी कुश्लता पूछी, फिर आगे बढ़कर रास्ता दिखाने लगे । सारा जंगल इस प्रकाश से जगमगा उठा । अब हमें धर्मशाला पहुंचाने का जिम्मा उन लोगों का था । उनके साथ सवेरे हमारे साथ चले सिपाही भी थे । वह अपने तीरों से सुसज्जित थे । यह अलौकिक काफिला धीरे-धीरे सीतानाले के पास पहुंचा । यहां पक्की सड़क थी, जहां कभी डाक बंगला बना था, परन्तु अब यहां ठहरने की इजाजत नहीं । सड़क भी भारत सरकार ने
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