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आस्था की ओर बढ़ते कदम
धर्मशाला में ठहरते हैं । इस स्थान पर जैन परम्परा का पुर्ननिर्वाह किया जाता है । हर प्रदेश के यात्रियों का यह अच्छा मिलन स्थल है । यात्रा करने वले तीर्थ यात्रियों को सर्वप्रथम भोमियां जी की पूजा करनी होती है । फिर उनकी आज्ञा से पूजा शुरु होती है । यात्रा सम्पन्न होने पर भी भोमियां जी का प्रशाद चढ़ाना जरूरी है । यह तीर्थ की नान्यता है । पर्वत की चढ़ाई में व्यवस्था व सुरक्षा के लिये सिपाही साथ भेजे जाते हैं । यह यात्रियों की जंगली जानवरों से सुरक्षा करते हैं । सिपाही नीचे रुकते हैं । हर यात्री को अपनी धर्मशाला में यात्री की सूचना देना जरूरी है । ऊपर घना जंगल, चोटियां व प्रकृति के सुन्दर दृश्य विखरे पड़े हैं । कलकत्ता वालों के लिये तो यह हिल स्टेशन की तरह है, पर यहां यात्री के लिये निश्चय बनाया जाता है कि मांस, शराव या उससे वना पदार्थ पहाड़ पर न ले जाया जाये । तारी व्यवस्था श्वेताम्बर कोठी की गुजराती समाज के जिम्मे है ।
समेदशिखर दर्शन :
पर्वत के ऊपर चढ़ते सव से पहले सीतानाला आता है । यहां सिपाही रुक जाते हैं और वापसी तक इंतजार करते हैं । यहां से सीधी चढ़ाई शुरु हो जाती है । आगे गंधर्व नाला आता है, जिसका जल सुन्दर व स्वच्छ है । यहां पूजा की सामग्री शुद्ध की जाती है, फिर आती है पहली टोक जो गणधर गौतम स्वामी की है, यहां एक कमरे की धर्मशाला है, जहां मुनिराज ही ठहर सकते हैं । गृहस्थी को हर हालत में नीचे आना होता है ।
दूसरी टोक आठवें तीर्थकर श्री कुन्थुनाथ की है । तीसरी टोक शाश्वत तीर्थकर ऋषभानन की है चौथी टोक श्री
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