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- आस्था की ओर बढ़ते कदम तो कौन सी बड़ी बात है ?"
कुछ पल के वाद प्रभु महावीर ने कहा, “इन्द्रभूति ! तुम्हारे मन में आत्मा के बारे में संशय है ।" प्रभु महावीर की वाणी सुनकर इन्द्रभूति परेशान हो गया, क्योंकि अपनी कमजोरी को वह अकेला ही जानता था । उसने कभी नहीं सोचा था कि कोई मेरे मन की वात को भरी महफिल में रख देगा ।
प्रभु महावीर ने कहा, “इन्द्रभूति ! वेदों के अध्ययन करते समय तुम्हारे मन में यह संशय उत्पन्न हुआ । पर तूने इसका कभी निराकरण करने की चेष्टा नहीं की ।" फिर प्रभु महावीर ने गौतम की समस्त संशय का निराकरण किया । अपनी प्रतिज्ञा अनुसार इन्द्रभूति प्रभु महावीर का प्रथम शिष्य वन गया । इन्द्रभूति के शिष्य बनते ही ब्राह्मण समाज गढ़ ही ढह गया । वेद आधारित यज्ञ संस्कृति का स्तम्भ गिर गयां । यज्ञशाला में भूचाल सा आ गया । प्रभु महावीर के प्रथम उपदेश में इन्द्रभूति के इलावा पावा में सम्मिलित प्रमुख विद्वानों ने बारी-बारी अपनी शंका का निवारण किया । यहां चन्दनवाला ने भी दीक्षा ग्रहण की । यह वहीं इन्द्रभूति गौतम थे जो चौदह हजार साधुसंघ के प्रमुख थे, आर्यचन्दना छत्तीस हजार साध्वियों को प्रमुख थी । युद्ध में उनके पिता मारे गये थे । माता ने शील की रखा के लिये आत्म हत्या कर ली । पहले वैश्या ने खरीदा, फिर श्रेष्ठी धन्ना पुत्री बनाकर घर रखा, उसकी दीक्षा भी समोसरण में हुई थी ।।
गौतम स्वामी व उनके साथियों को ६ गणों में बांटा गया । अकेले गौतम स्वामी व सुधर्मा ही प्रभु महावीर के पश्चात जीवित रहे । गणधर गौतम महान आत्मा थे । वह सूर्य की किरण पकड़कर अष्टापद तीर्थ पर चढ़े । वहां १५०० तापस भूखे प्यासे जीवन कठोर तपस्या कर रहे हैं ।
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