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- आस्था की ओर बढ़ते कदम जैसे मैंने पहले उल्लेख किया है कि यह ट्रेन रात्रि ८:३० वजे चलनी थी । शाम का भोजन करने के पश्चात् हम ट्रेन की ओर रवाना हुए । जव हमने ट्रेन की सीट ग्रहण की तो वहां का नजारा देखने योग्य था । लोग रात्रि के कारण अपनी सीटों पर सोने को तैयार थे । वह वरसात के दिन थे । मैंने नवकार मंत्र की एक माला मन में फेरी । रात्रि अपनी चरम सीमा पर थी । यात्री धीरे-धीरे सोने लगे, पर सारे डिब्बे में एक आवाज हर पल गूंजती रही, वह थी खाने-पीने का सामान बेचने वाले हाकरों की । इनके कदमों की चहल-पहल व आवाजें हमें सारे सफर में सुनाई देती रहीं । यह विचित्र अनुभव था जिस रात्रि में भी दिन का नजारा अनुभव हुआ ।
हमारी सीटें चाहें दो थीं, परन्तु हमारा मन सारी रात वातें करने का था । मेरे धर्मभ्राता रवीन्द्र जैन इसे सत्संग का नाम देते हैं, वह मुझे हमेशा 'साहिव' संज्ञा से पुकारते से आये है । जिसकी परिभाषा उन्होंने श्रमणोपासक पुस्तक में श्रद्धा से की है। ट्रेन अपनी तीव्र गति से चल रही थी । दिल्ली से सारी ट्रेने उन दिनों पंजाव में डीजल व कोयले से चलती थीं । ट्रेन अपनी गति से आगे बढ़ रही थी, यह ट्रेन वहुत खास स्टेशनों पर रुकती थी । पहले आया कृष्ण जन्म भूमि का तीर्थ मथुरा, जो संसार में प्रसिद्ध तीर्थ है, जिसकी यात्रा १९७२ में पहले कर चुके थे । फिर स्टेशन आगरा आया, जो मुगल काल के समय राजधानी थी । मुगल स्मारकों में ताज महल, किला, सिकन्दरीया, दवालवाग, फतेहपुर सीकरी के लिये प्रसिद्ध है । फिर आया भारत का औद्योगिक नगर कानपुर, जो बड़े उद्योगों व चमड़े के उद्योग का मुख्य केन्द्र है । यह शहर उत्तर प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था का केन्द्र है । कानपुर में देखने को बहुत कुछ था । कानपुर
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