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.. -- स्था ८..is । कदम की छदे देखकर हमें आत्मिक शांति मिलती है । इसी आत्मिक शांति के लिये तीर्थ स्थानों की यात्रा के लिये जाते हैं । इन यात्राओं से हमारा ज्ञान बढ़ता है । जंगम तीर्थ
दूसरे तीर्थ हमारे आचार्य, उपध्याय, साधु व साध्वी हैं जो हमें धर्म-उपदेश से मुक्ति का रास्ता बताते हैं । तीर्थ चाहे स्थावर या जंगम, सभी तीर्थ हमारे लिये वन्दनीय, यूनीय व हमारी आरथा के प्रतीक हैं । जैन धर्म में एक मान्यत है कि वर्ष में एक वार तीर्थ यात्रा करने से आत्मा युद्ध और धर्म की ओर अग्रसर होती है । मन व आत्मा शुभ भावों को प्राप्त करतें हैं, इस कारण तीर्थ यात्रा कर्म निर्जरा का कारण है । दोनों तरह के तीर्थ हमें अपनी इतिहासिक परम्परा की साहित्यिक जानकारी देते हैं । यह तीर्थ भारतीय संस्कृति का अनूठा संगम है, जहां विभिन्न प्रदेशों के लोग व संस्कृति के दर्शन होते हैं । विभिन्न प्रदेशों की परम्परा व मान्यताओं से हम अवगत होते हैं । विभिन्न भाषाओं, रीति-रिवाजों, वेश-भूषा से हम इस क्षेत्र की सांस्कृतिक एकता के दर्शन करते हैं । मेरी तीर्थ यात्रा दो प्रकार से सम्पन्न हुई । मेने प्रथम तीर्थ यात्रा १६८८ में अपने धर्म भ्राता श्री रविन्द्र जैन, मालेरकोटला के साथ शुरु की । इसका कारण यह था कि हमारी काफी समय से इच्छा थी कि हम इकट्टे जैन संस्कृति के प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा करें । दूसरी यात्रा मैंने अपने परिवार के परिजनों के साथ की । इसमें मुनि दर्शनों के साथ तीर्थ यात्रा भा सम्पन्न की थी । मेरी प्रथम तीर्थ यात्रा : तीर्थ का अर्थ है किनारा । जो हमें संसार सागर के
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