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= आस्था की ओर बढ़ते कदम आप की शिष्या राजमति जी महाराज थी। जिन्होंने राजमति जैसा उदाहरण प्रस्तुत किया। आप की शादी आप की मर्जी के विरूद्ध कर दी। आप ने अपने वैराग्य को शादी के बाद जारी रखा। आखिर ससुर व पीहर दोनों पक्षों को झुकना पड़ा। आप साध्वी बनीं। प्रवर्तनी श्री पावर्ती से दीक्षा ग्रहण कर आगमों का सूक्ष्म अध्ययन किया। आप की शिष्या साध्वी श्री ईश्वरा देवी थीं। साध्वी श्री ईश्वरा देवी जी महाराज ने साध्वी पार्श्ववती को दीक्षित किया। साध्वी पार्श्ववती को हमारी गुरूणा को दीक्षित करने का सौभाग्य मिला। इनकी शिष्या गुरूणी प्रवर्तनी राजमति जी के निर्देशन में हुई। आप ने विभिन्न धमों के साहित्य का तुल्नात्मक अध्ययन किया। अनेक वार तप किया। अनेकों जीवों को मोक्ष मार्ग पर लगाया।
सायी श्री स्वर्णकांता जी महाराज का जीवन क्रांन्तिकारी रहा। आप का जन्म प्राचीन पंजाब की राजधानी लाहौर के सूश्रावक सेट खजानचन्द्र व माता दुर्गा देवी के यहां २६ जनवरी १६२६ को हुआ। आप को नाम दिया गड. लज्जा। जिस दिन आप का जन्म हुआ उस दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य का नारा लगाया था। आप के पिता उस दिन एक लम्बा मुकद्मा जीते थे। उनकी लाज वच गई थी। यह नान उसका प्रतीक था। घर का वातावरण धार्मिक था। इस का प्रभाव वालिका लज्जा पर भी पड़ा। आठ वर्ष की आयु में उनके एक फोडा निकल आवा। यह फोडा समाप्ति का नाम नहीं लेता था। आखिर एक दिन लज्जा ने सोचा कि अगर यह फोडे की तकलीफ दूर हो जाए तो मैं साध्वी वन जाउं। यह संयम के वीज थे जो फूटने शुरू हो गए। आपने प्रतिज्ञा लेने के कुछ समय बाद फोडा समाप्त हो गया। आप पढाई में बहुत होशियार थीं। घर में रह कर
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