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= aણ્યા છો તોર વાહો દમ धा। सरकारी नौकरी की जिम्मेवारी निभाते हुए इतना वडा गुरुत्तर कार्य सम्पन्न किया था। सरदार (डा०) धर्म सिंह व डा० धर्म चन्द जैन ने स्थानीय विद्वानों से शोध निबंध लिखवाए। सभी विद्वानों को संस्था की ओर से सम्मानित किया गया। यह अभिनंदन ग्रंथ का समारोह था। जिस के नाध्यम से हमें अधिकांश विद्वानों से मिलने का सौभाग्य मिला। सारे भारत में निमंत्रण पत्र वांटे गए। .
शहर में काफी साधु साध्वीयों का आगमन हो चुका था। श्वेताम्बर तथा गच्छ के आचार्य श्री नित्यानंद जी महाराज विशेष रूप से पधारे थे। हमें अम्बाला में लगातार जाना पड़ रहा था। हम जो भी प्रोग्राम दिमाग में रखते, वहीं साध्वी श्री सुधा जी महाराज व साध्वी श्री स्मृति जी महाराज को वता देते। साध्वी जी हमारी बात पर पूरा ध्यान देती।
आखिर वह शुभ दिन आ गया जव हमें अपनी मुरुणी श्री स्वर्णकांता जी महाराज के ५० दीक्षा महोत्सव ननाने का अवसरा मिला था। दो दिन से अतिथियों का तांता अम्बाला में लगा हुआ था। मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, पंजाव, हिमाचल, दिल्ली, चण्डीगढ़, के श्रद्धालु अपने अपने वाहनों से आ रहे थे। स्थानीय श्री संघ ने यात्रीयों के लिए समुचित वयवस्था की थी। होटल, धर्मशाला में यात्रीयों के लिए बुक करवा रखी थीं। बाहर से आने वाले श्रावक श्राविकाओं के लिए खाने की समुचित व्यवस्था जैन भवन में थी। २५ जनवरी को तपस्या के साथ साथ अखण्ड जाप भी चल रहा था। जिस में वाहर से आए श्रावक श्राविकाओं ने भाग लिया। इस कारण स्थानक में बहुत भीड़ थी। वहुत सारे पुस्तक बेचने वालों ने पुस्तके व अन्य प्रचार सामग्री के स्टाल लगा रखे थे। दिवाकर प्रकाशन का अपनी पुस्तकों का स्टाल था। जिस में उन्होंने उस दिन विशेष छूट से ग्रंथ वेचने
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