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વાસ્યા છો તોર હવે જ कार्य साध्वी मण्डल को सौंपा गया।
शोध लेखों को सर्व प्रथम हम ने देखा। उसके पश्चात इन लेखों का डा० धर्म सिंह, डा० धर्म चन्द जैन व श्री श्री चन्द सुराणा ने पुर्ननिरिक्षण किया। इस ग्रंट के प्रकाशन का उतरदायित्व श्री राजेश सुराणा के जिम्मे था। हम ने यह कार्य आगरा से शुरू करवाया। श्री सुराण, ने हमारे शर्त रखी कि “सारा मैटर इकट्ठा प्रकाशित होना" यह चेलेन्ज हमारे लिए कठिन था। क्योंकि आगरा हमारे लिए ७०० किलोमीटर की दूरी पर था। ८ महीनों में की मैटर इकट्ठा हो गया। यह मैटर ४०० पन्नों का था। श्री राजेश सुराणा को अम्बाला साध्वी श्री सुधा जी महाराज के समक्ष बुलाया गया। श्री राजेश सुराणा अपने पिता श्री श्री चन्द सुराणा के साथ आए। श्री राजेश सुराणा ने साली श्री स्वर्णकांता जी के प्रथम दर्शन किए थे। प्रथम भेंट में उन्की पुत्रवधू ने साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज को गुरू, पण कर लिया। उस दिन से सुराणा परिवार से साध्वी परिवार के अच्छे संबंध बन गए जो भविष्य में काफी सहायक निन्द
हुए।
पहली मीटिंग में अभिनंदन ग्रंथ की रूप रेखा तैयार हुई। यह तय हुआ कि ऐसा कोई लेख प्रकाशित नहीं होगा जो सम्प्रदायिक तनाव का कारण बने। सारा नेटर प्रकाशन योग्य आगरा सुपुर्द कर दिया गया। ग्रंथ प्रकाशन होना शुरू हो गया। इस की व्यवस्था वहुत सुन्दर थी। प्रेस मे ५ वार प्रुफ पढ़े जाते। अंतिम वार प्रुफ पास करने के लिए हमारे पास आते। हम प्रुफ चैक कर के कोरियर द्वारा
आगरा भेज देते। फिर फाईनल पेज छप कर हमारे पास आ जाते। इस प्रकार इस अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन दो रंग में हुआ।
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