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आस्था की ओर बढ़ते कदम
इन्द्रों का सपरिवार देव देवीयों के आने का वर्णन है । फिर उनके बचपन की अलोकिक लीलाओं का वर्णन किया गया है । प्रभु महावीर के विवाह, माता पिता के स्वर्ग सिधारने पर दीक्षा के संकप का वर्णन किया गया है। साथ में दिगम्बर परम्परा का वर्णन करके प्रभु महावीर के जीवन की मान्यता को तुल्नात्मक पक्ष प्रस्तुत किया गया है।
चर्तुथ अध्ययन में नौ लोकांतिक देवों की प्रेरणा से प्रभु महावीर द्वारा दीक्षा ग्रहण करने का वर्णन है। देवता द्वारा प्रभु महावीर की चन्द्रप्रभा पालकी उठाने का वर्णन है । प्रभु महावीर द्वारा क्षत्रियकुण्ड के बाहर दीक्षा ग्रहण करने का विवेचन किया गया है। दीक्षा लेते ही उन्हें चतुर्थ मन पर्यव ज्ञान हो गया। प्रभु ने केशलोच किया साथ में इन्द्र द्वारा देवदुष्य वस्त्र देने का वर्णन है।.
खण्ड
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इस खण्ड में प्रभु महावीर की साढ़े बारह वर्ष की साधना का वर्णन है । प्रभु महावीर इन वर्षों में कहां कहां पधारे, क्या क्या प्रमुख घटनाएं हुई। उन्हें मनुष्यों, पशु व देवों ने किस तरह के कष्ट दिए, कैसे कैसे कष्ट उन्होंने अपने सुकुमार शरीर पर झेले। इन सव का वर्णन इस खण्ड के प्रथम अध्ययन में किया गया है। इस में ही आजीवक धर्म के मंखलि पुत्र गोशालक का वर्णन है। इसी खण्ड में राजकुमारी से दासी वनी साध्वी चन्दनवाला का वर्णन है । प्रभु महावीर के २१ गुणों का वर्णन है। जो कल्प सूत्र पर आधारित है जो अलंकारिक भाषा में है ।
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दूसरे अध्ययन में प्रभु महावीर को हुए केवल्य ज्ञान का वर्णन है । केवल्य ज्ञान ऋजुवालिका नदी के किनारे हुआ था । केवल्य ज्ञान प्रभु महावीर समारोह देवताओं ने
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