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आस्था की ओर बढ़ते कदम
ब्राह्मी, सुन्दरी, चन्दना आदि १६ साध्वीयां जैन धर्म में पूज्य हैं । स्थूलभद्र की सात वहिनों का जैन इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान हैं। याकिनी महत्तरा, जैसी साध्वी भी हुई, जिस ने आचार्य हरिभद्र को धर्म पर आरूढ़ करा, प्रायश्चित रूप में १४४४ ग्रंथों की रचना करवाई । खरतर गच्छ की कई साध्वीयों का वर्णन पंजावी साध्वी परम्परा में मिलता है । पंजाव के इतिहास में साध्वी ज्ञाना जी सुनाम की साध्वी थीं। आप के समय कोई भी साधु ना रहा । साध्वी श्री को इस बात की चिंता सताने लगी। उन्होंने अपने भानजे को वैरागी बना कर पढ़ाना शुरू किया। बाद में उन्हें जैन साधु दीक्षा प्रदान की । फिर शास्त्रों का स्वाध्याय करवाया । वह संत इतने प्रसिद्ध हुए कि श्री संघ ने उन्हें आचार्य पद से विभूषित किया । साध्वी ज्ञाना जी की परम्परा में कई साध्वीयों की शाखा निकली। सव पंजाव में धर्म प्रचार करने वाली साध्वीयां थीं ।
जैन धर्म में स्त्री का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है । जैन धर्म में एक स्त्री तीर्थंकर भगवती मल्ली जी हुई। जिन्होंने अनेकों राजाओं को प्रतिबोध देकर जैन धर्म में दीक्षित किया। राजुल जैसी साध्वी ने रथनेमि मुनि को धर्म से अष्ट मोक्ष मुनि मार्ग पर पुनः आरूढ़ किया। भगवान महावीर के शाषण में अनेकों साध्वीयां हुई हैं जिनका अपना इतिहास है । आज भी जैन साध्वीयों ने साहित्य, धर्म, कला, शिक्षा, संस्कृति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान डाला है। स्वप्नों पर आधारित जैन मंदिर ६ :
विश्व की प्रसिद्ध पंजावी लेखिका श्रीमती अमृता प्रीतम जी व्योवृद्ध होते हुए भी, हमेशा विचार से तरूण हैं। वह हर भाषा के लेखक को मिलती हैं, प्रेरणा देती हैं । ऐसी घटना हमारे साथ भी घटी। जब अमृता जी की पुस्तक 'लाल
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