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-आस्था की ओर बढ़ते कदम वीतराग प्रभु, पांच महाव्रत धारी साधु सवर्ड कथित धर्म प्रमुख सहायक हैं। श्री कृष्ण की श्रद्धा की बात की और किसी का ध्यान नहीं। लोग महापुरूषों के कथन को क्यों भूलाते हैं ? पता नहीं । संसार में उन्हें भटकना क्यों पसंद है ? धर्म वही परम सत्य है जो सम्यक्त्व में सहायक हो, सम्यकत्व वढाए, वह अन्य शास्त्रों से मिले, पूज्यनीय हो। ६ गर्म का आधार श्रद्धा है, प्राण श्रृद्धा है, आत्मा श्रद्धा है। श्रद्धा विहीन धर्म अधर्म है। श्रद्धा रहित किया गया अच्छा काम भी पाप का कारण बन जाता है। श्रद्धा में प्रमुख तत्व ज्ञान ही है। ज्ञान रहित श्रद्धा को लोग अंधश्रद्धा कहते हैं। हमें इसे अंधेरे से बचाने के लिए प्रभु महावीर ने श्रद्धा को धर्म के ४ दुर्लभ अंगों में स्थान दिया है।
श्रद्धा धर्म की माता है, पिता है, मित्र है। धर्म के इस तत्व की यात्रा के बाद हमारी यात्रा शुरू होती है। श्रद्धा के कारण ही गुरू की प्राप्ति होती है। गुरू की श्रद्धा हमें ६ र्म की पहचान करवाती है। इसी लिए नवकार मंत्र में सर्व प्रथम अरिहंत भगवान को नमस्कार किया गया है। इस के वाद सिद्ध परमात्मा को। चाहिए पहले सिद्धों को नमस्कार करना था। परन्तु गुरू ही हमें सिद्ध भगवान् का स्वरूप वतलाते हैं इसी कारण उन्हें पहले प्रणाम किया गया है।
धर्म का अंतिम व परम दुर्लभ तत्व है सुने धर्म पर चलना। मनुष्य जन्म तो कर्म के अनुसार मिल जाता है। आर्य देश में जन्म होने के कारण सवर्ड कथित धर्म सुनने को भी मिल गया है। फिर शुभ कमों के उदय से धर्म के प्रति श्रद्धा भी हो गई है। फिर भी उस धर्म कर चलना परम दुर्लभ है। इस का कारण मिथ्यात्वी लोग हैं, जो चमत्कार को नमस्कार करते है। सम्यकत्व पर दृढ़ रहना बहुत मुश्किल है। हजारों साल के तपस्वी की एक क्षण के मिथ्यात्व के
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