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-स्था की ओर बढ़ते कदम मान्यताओं के बारे में श्रद्धा से लिखा गया है। इस में २४ तीथंकरों का जीवन वृत, भारत. व विदेशों में जैन धर्म के प्रचार-प्रसार का वर्णन है। इस भाग में जैन राजाओं का वर्णन भी है। .
दूसरे भाग में ही साधु, साध्वी, उपाध्याय व आचार्य के गुणों का वर्णन किया गया है। इसी खण्ड में है तत्व व षट द्रव्यों का विस्तृत वर्णन है।
तृतीय भाग में अनेकांतवाद, प्रमाण, नय, निक्षेप, आत्मा, परमात्मा, गुण, स्थान लेश्या व मोक्ष संबंधी जैन मान्यताओं का वर्णन किया गया है। जैन धर्म भारत का प्राचीनतम स्वतन्त्र धर्म है। इस वात पर जोर दिया गया है। इस ग्रंथ का समर्पण आचार्य सुशील कुमार जी महाराज के एक अंतराष्ट्रीय जैन सम्मेलन के अवसर पर विज्ञान भवन में किया था। यह ग्रंथ जैन दार्शनिक परम्परा को समझने का एक मात्र साधन है। इस ग्रंथ में जैन परम्पराओं और मान्यताओं का पूर्ण ध्यान रखा गया है। इस ग्रंथ में जैन पवों का वर्णन भी किया गया है। इस ग्रंथ का विमोचन पंजावी यूनिवर्सिटी के प्रांगन में हुआ था। हमारी कोशिश रही है कि
जैन धर्म का कोई विषय ऐसा न रहे, जो अछूता हो। इस में __ अन्य वातों के साथ जैन तीर्थ का संक्षिप्त परिचय है देव,
गुरू व धर्म की खुल कर व्याख्या नवकार मंत्र में आ गई है। जैन काल गणना का उल्लेख भी किया गया है। अरिहंत, सिद्ध के गुण तीर्थकरों, अतिशयों का वर्णन भी कर दिया गया है। इस ग्रंथ की भूमिका फ्रांस की विदूषी डा० नलिनि वलवीर ने लिखी है। यह सूत्रकृतांग का भाग की भूमिका का भाग भी है इस पुस्तक को पढ़े विना सूत्रकृतांग पढ़ना कठिन है।
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