________________
-आस्था की ओर बढ़ते कदग श्रावक को रोजाना पठन योग प्राकृत पाठों का लिपितंर जैन साध्वी श्री स्वर्णकांता जी के दिशा निर्देश में तैयार किया गया है। पंजाब के गांवों में पंजावी माध्यम होने के कारण प्रचार के कार्य में दिक्कत आ रही थी। जंगल देश के श्रावकों के कल्याणार्थ इस गुटके का प्रकाशन हुआ। यह भी प्रथम प्रयास था जो बहुत अच्छा रहा। हमारे इस प्रयास से उत्साहित अनेकों क्षेत्रो व संस्थाओं का ऐसा आयोजन हुआ।
- इस प्रकार अर्धमागधी प्राकृत भाषा में जो प्रकाशित या अप्रकाशित साहित्य है हमारे द्वारा उस की सूचना दी गई है। इन अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित करने की योजना
वन रही है। जिसे सरलात्मा गुरूणी साध्वी श्री सुधा जी ___ महाराज पूरी करने में संलग्न हैं। संस्कृत साहित्य :
। संस्कृत भारत की ही नहीं, विश्व की प्राचीनतम् भाषाओं में मानी जाती है। इसका प्रमाण ऋगवेद है जो संसार की प्राचीनतम् पुस्तक मानी जाती है। इस भाषा में वेदिक, बोद्ध, व जैन साहित्य विपुल मात्रा में मिलता है। जैन संस्कृत साहित्य के प्राचीन विद्धानों की लम्बी परम्परा आज तक चल रही है। इन विद्धानों में आचार्य मानतुंग, आचार्य उमास्वामी, आचार्य सिद्धसेन दिवाकर, श्री शीलांकाचार्य, आचार्य अभयदेव सूरि, आचार्य नेमिचन्द, आचार्य जिनप्रभव सूरि, आचार्य हेम चन्द्र सूरि व आचार्य यशोविजय के नाम उल्लेखनीय हैं। जिन्होंने जैन आगमों की विभिन्न शाखाओं पर कार्य किया है। हम ने भी कुछ प्राचीन आचार्यों की कृतियों का पंजाबी अनुवाद करके, इसे प्रकाशित किया है जिन का विवरण इस प्रकार है :
173