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आस्था की ओर बढ़ते कदम
से दूर रहता है । अपनी प्रसिद्धि नही चाहता, न ही ज्योतिष से आजीविका चलाता है। सच्चा साधू रूखा सूखा खा कर गुजारा करता है । तप व स्वाध्याय में समय व्यतीत करता है। भिक्षा की प्राप्ति पर किसी को आर्शीवाद नहीं देता, न मिलने पर श्राप नहीं देता। वह जात पात के भेद से उपर उठ कर समभाव से विचरण करता है। सच्चा साधु कर्म की निर्जरा द्वारा मोक्ष को प्राप्त करता है । इस में गाथाओं की संख्या १६ हैं ।
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१६वें अध्ययन ब्रह्मचर्य समाधि स्थान है । इस अध्ययन में ब्रह्मचर्य व्रत पर भगवान महावीर ने अच्छी व्याख्या की गई है । किस तरह विशुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है । उस के बारे में बताया गया है । यह ब्रह्मचारी भिक्षुओं के लिए निर्देश के रूप में है। एक स्थान पर कहा गया है “जो कठिन ब्रह्मचर्य का विशुद्ध रूप से पालन करता है वह देव, दानव, गंधर्व, यक्ष व राक्षसों द्वारा पूजनीय, वन्दनीय होता है। इस अध्ययन के १२ प्रश्न गद्य रूप में है।
१७वां अध्ययन गाथा रूप में है ।
१८वां अध्ययन संजयीय है। जो काफी प्राचीन लगता है । इस अध्ययन में भारतवर्ष में डुए चक्रवर्ती, तीर्थंकरों, प्रत्येक वुद्ध का गुणगान ५४ गाथाओं के रूप में किया गया है। इस में जैन इतिहास की प्राचीनता छुपी है | १६वें अध्ययन में मृगापूत्र द्वारा दीक्षा ग्रहण करने का सुन्दर वर्णन है । मृगापूत्र सुग्रीव नगर के वलभद्र का सपूत्र था । इस राजा की रानी का नाम मृगावती था । उसी के पूत्र को किसी मुनि कों देखते ही पूर्व भव याद आ गया। पूर्व भव याद आतें ही उसे संसार के बंधन झूठे नजर आने लगे। उस ने राजपाट का त्याग कर संयम ग्रहण किया ।
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