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- आस्था की ओर बढ़ते कदम व अज्ञानी के लक्षण बताए गए हैं। शिक्षा ग्रहण के पांच कारण वताए गए हैं। १. न हंसने वाला २. इनद्रिय निग्रह करने वाला ३. हृदय विदारक भाषा कहने वाला ४. शुद्ध
आचार वाला ५. अच्छे चारित्र वाला। - इस में ३० गाथाएं हैं।
वारहवां अध्ययन का नाम हरिकेषी है। इस में चण्डाल जाति के एक मुनि का वर्णन है। इस में जैन धर्म में वेद यज्ञ का स्थान का पता चलता है। जैन धर्म में न वेद का स्थान है, न व्राहमणों के कर्म काण्ड का। यहां तपस्या का महत्व है जाति का नहीं। इस अध्ययन में ४७ गाथाएं हैं।
. तेरहवें अध्ययन में चित्त सम्भूति मुनि भाईयों का वर्णन हैं इस में ३५ गाथाओं में आपसी वार्तालाप के माध्यम के प्रभु महावीर के उपदेश दोहराया गया है। इस की ३५ गाथाएं है। इस में चित मुनि द्वारा अपने राजा बने भाई को वैराग्यमय उपदेश दे रहा है।
चौदहवें अध्ययन का नाम इषुकारीय है। इस अध्ययन में भृगु पुरोहित व उसकी पत्नी वशा तथा दो पुत्रों राजा रानी कमलावती, राजा इषुकारीय के दीक्षा के प्रसंग है। इस अध्ययन में वैदिक परम्परा की कई मान्यताओं का खण्डन है। प्राचीन काल में राजा उस व्यक्ति की सम्पति ग्रहण कर लेता था जिस की संतान न हो। राजा भी भृगु पुरोहित के परिवार की दीक्षा का समाचार सुन कर कार्य करने जा रहा था पर रानी कमलावती के उपदेश से वह इस कार्य से रुक गया। इस अध्ययन परस्पर वार्तालाप के रूप में है। इस अध्ययन की ५३ गाथाएं हैं।
१५वें अध्ययन का नाम सभिक्षु है। इस अध्ययन __ में अच्छे भिक्षु के गुण बताए गए हैं। इस अध्ययन में बताया ___ गया है कि सच्चा साधु राग, द्वेष छोड़ कर संसारिक संसंग
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