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- आस्था की ओर बढ़ते कदम साधु जीवन तक छोड़ देते हैं। इन्हें परिषह की संज्ञा दी गई है। ये २२ हैं। सभी परिषह साध्वाचार के प्राण हैं इस में ४६ गाथा हैं यह तृतीय अध्ययन का नाम चतुरंगीय है। इस में धर्म के ४ महत्वपूर्ण अंगों की दुलभता का वर्णन है। यह अंग हैं : १. मनुष्य जन्म २. सम्यक् धर्म का सुनना ३. श्रद्धा
४. पुरुषार्थ । ये इस अध्ययन में २० गाथाएं है। यह अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण अर्थ रखता है। जे. नननीय है।
चर्तुथ अध्ययन के नाम असंस्कृत अध्ययन है। इस में मनुष्य को सावधान करते हुर कहा गया है “जीवन क्षण भंगुर है, यह जीवन की डोर कभी टूट सकती है। मृत्यु के समय धन, सम्पति, रिश्तेदार, सगे-संबंधी, मित्र और माता-पिता कोई सहायक नहीं हो। इस लिए मनुष्य को प्रमाद का त्याग कर, सत्य धर्म की शरण ग्रहण करनी चाहिए। इसकी १३ गाथाएं हैं। यह बैंगग्य पूर्ण अध्ययन है। पांचवे अध्ययन का नाम अकाम नाणीय है। इस में ज्ञानी
और अज्ञानी की मृत्यु का अंतर बताया गया है। ज्ञानी पंडित परण स्वीकार करता है। अज्ञानी वाल मरण। इस की ३२ गाथाएं है। इस में मुनि को सनधि मरण स्वीकार करने की बात कही गई है।
छठा अध्ययन क्षुल्लक निग्रंथीया नाम से प्रसिद्ध है। इस की १८ गाथाएं है। इस में जीव से अज्ञान से बचने का उपदेश प्रभु महावीर ने दिया है। वह फुरमाते हैं कि कमों का फल भोगते जीव का कोई सहारा नहीं बनता। इस लिए सम्यक दृष्टि जीव संसार के किसी पदार्थ के प्रति लगाव नहीं रखे। जीव को वैर, अहिंसा, चोरी छोड़ने का उपदेश दिया गया है। इस अध्ययन में बताया गया है, कि मात्र तत्व
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