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- आस्था की ओर बढ़ते कदम उल्लेख किया गया। फिर एक जैन ट्राफी, शाल, प्रशस्ति पत्र व कुछ सन्मान राशी डा० भट्ट को दी गई। डा० भट्ट ने अपने भाषण में महासाध्वी श्री पार्वती जी महाराज के जीवन व उनकी साहित्य रचनाओं पर हिन्दी में भाषण दिया। डा० भट्ट मूलतः गुजराती है। उन्हें हिन्दी बोलने में कठिनाई
आती है। जैन धर्म का उत्कृष्ट विद्वान हैं। अनेक भारतीय व विदेशी भाषाओं में पंडित हैं। अपने भाषण में उन्होंने साध्वी श्री को हर रचना पर विवेचन दिया। उन्हें महान धर्म रक्षिका की संज्ञा दी। उन्होंने महासाध्वी व हमारी समिति का, उन्हें यह अवार्ड के लिए : आभार प्रकट किया।
इस प्रकार इन अवाडों की घोषणा होने लगी। हम वर्ष भर अच्छे साहित्य की तलाश में रहते। जो पुस्तक हमारी कसौटी पर ठीक उतरती, उस को अवार्ड का नाम साध्वी श्री स्वर्ण कांता जी महाराज को प्रेषित कर दिया जाता। महासाध्वी श्री स्वर्ण कांता जी महाराज हमारे द्वारा अनुमंदित रचना का निरिक्षण स्वयं करतीं। कई वार वह कृति और कृतिकार के बारे में चर्चा भी करती। साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज के वार्तालाप से उनकी शास्त्र ज्ञान के प्रति मर्मज्ञता के दर्शन होते हैं। इस अवार्ड के संबंध में मेरा लगातार वह प्रयत्न रहा है कि इस अवार्ड के लिए महिला लेखिका का चयन हो। चाहे यह कोई नियम नहीं था। मात्र इच्छा थी जिसका कारण यह था क्योंकि हमारी अवार्ड की नाविका एक विदूषी महिला है। इस की प्रेरिका भी एक महिला है। इस लिए मातृशक्ति के संगठन के लिए यह जरूरी है कि महिलाओं का सम्मान हो। भारतीय संस्कृति मातृ प्रधान संस्कृति है। ठीक है मध्यकाल में स्त्री और शुद्र को एक जी तराजू में रखा गया। पर श्रमण संस्कृति ने अनादिकाल से स्त्री को पुरूष के वरावर स्थान दिया। जैन
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