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-आस्था की ओर बढ़ते कदम श्री राजमति जी महाराज की शिष्य साध्वी श्री ईश्वरी देवी थी। साध्वी श्री ईश्वरी देवी जी की शिष्या साध्वी श्री. पार्श्ववती जी महाराज थी। साध्वी श्री पार्श्ववती जी महाराज ही हमारी गुरूणी उप-प्रवर्तनी श्री स्वर्णकांता जी महाराज की दीक्षा गुरूणी थीं।
महासती पार्वती महान विदूषी थीं। वह हिन्दी भाषा की प्रथम जैन महिला लेखिका थीं जिन्होंने ४० से ज्यादा ग्रंथ हिन्दी साहित्य को प्रदान किए। उनके कुछ ग्रंथों का अनुवाद उर्दू भाषा में भी हुआ। उन्होंने अपने समय में जैनों के विभिन्न सम्प्रदायों के अतिरिक्त आर्य सामज के खण्डन का उत्तर सशक्त ढंग से दिया था। उनके ग्रंथ पढ़ने से उनकी योग्यता का पता चलता है। वह पंजाव सिंहनी थी। उनका भव्य शिष्य परिवार था। वह लेखिका के अतिरिक्त कवियत्रि थी। आप ने ढाल-चौपाई में अनेकों जैन चारित्र को पद्यमय ढंग से प्रस्तुत किया था। अभी यह ग्रंथ अप्रकाशित हैं।
ऐसी भव्य आत्मा को समर्पित है इंटरनैशनल पार्वती जैन अवार्ड जिसे वहुत से राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय विद्वान प्राप्त कर कृत-कृत हो चुके हैं। जिन में कुछ का वर्णन हम आगे संक्षिप्त में करेंगे। इसी महा साध्वी की स्मृति में हमारी समिति ने जैन ऐकता को प्रमुख रखते हुए इस अवार्ड की स्थापना की है। इस के दो लाभ हमें मिले। सर्वप्रथम तो इस अवार्ड के माध्यम से प्रवर्तनी श्री पार्वती जी महाराज उनके साहित्य व समाज को देन के बारे में संसार को पता चला। हमारी गुरूणी उपप्रवर्तनो श्री स्वर्ण कांता जी महाराज के कार्य की जैन, अजैन समाज में प्रशंसा हुई।
इस का दूसरा लाभ बहुत महत्वपूर्ण था। इस के माध्यम से हम संसार के लब्धि प्रतिष्टित जैन विद्वानों के
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