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________________ --- आस्था की ओर बढ़ते कदम वात हो रही है। .रत में जैन प्रारम्भ से ही अल्पसंख्यक रहे हैं। १९६२ में अल्पसंख्यक आयोग को कानूनी मान्यता मिली, तो जैनों का नाम निकाल दिया गया। जव पुनः सरकार तैयार हुई, तो समय बीत चुका था। कई लोग अल्पसंख्यक का अर्थ आरक्षण लगाते हैं। यह बिल्कुल गल्त है। क्योंकि भारत में आरक्षण मात्र पछड़ी श्रेणी व अनुसूचित जाति के लिए है, धर्म के लिए कोई आरक्षण नहीं। कुछ लोग तर्क करते हैं कि ऐसा करने से जैन लोग नीच जातियों में माने जाएंगे। दोनों की बातें गलत हैं। यह मांग जैन लोग इस लिए कर रहे है कि जैन धर्म को स्वतंत्रता बनी रहे। सांस्कृतिक पहचान बनी रहे। हाला कुछ आर.एस.एस. से प्रभावित नेता धीमे स्वर में इसका विरोध करते हैं। अगर धर्म को जाति नीच ही मानी जाए तो क्या सिक्ख नीच हैं ? पिछड़ी श्रेणी में, कई दक्षिण भारतीय जातियां हैं उनमें जैन है व: अपनी जाति के कारण हैं, धर्म के कारण नहीं ? वह इतिहासक पहचान को बनाए रखने का मामला है। जिस के लिए है. आचावों ने कुरवानी दी थी। आज भारत में मध्य प्रदेश, बिहार, तामिलनाडू, उत्तरप्र...., छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा ने जैन को अल्पसंख्यक दर्जा प्रदान कर दिया है। सब से बडा दवाव केन्द्र सरकार पर बढ़ा है। अगर जैन यह दर्जा नही लेते तो जैनों को अपने संस्थान, अपनी इच्छा से चलाने असंभव हैं। क्योंकि आज के युग में जो संस्थान जैन अपने धन से खोलते है, अल्पसंख्यक दर्जा मिलते ही उनमें ५० प्रतिशत विद्यार्थी आरक्षित हो जाएंगे। दूसरा जैन मन्दिर, जो स्वयं जैन चलाते हैं, यह दर्जा मिलने के कारण सरकार के हाथों में सीधे चले जाएंगे। वैसे केन्द्र सरकार को इस में एतराज नहीं होना चाहिए। परन्तु राजनेतिक इच्छा शक्ति की कमी 108
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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