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-आस्था की ओर बढ़ते कदम के जीवन को करीब से देखने का इन लोगों का प्रथम अवसर था। साध्वी श्री से अनेकों लोगों ने जैन धर्म व इतिहास के विषय में प्रश्न पूछे। हर प्रश्न का समाधान साध्वी श्री ने अपनी बुद्धि से दिया। उनका भाषण शेख सादी के फारसी के कलाम से हुआ। इस दिन मुझे पता चला आप उर्दू, फारसी भाषा की विदूषी भी थीं। यह प्रथम अवसर था कि साध्वी जी के प्रवचन से इतने विद्वान आकर्षित हुए। उन्होंने अपने बहुत से दार्शनिक प्रश्नों का उत्तर महासाध्वी जी से पाया। वाईस चांसलर साहिब महासाध्वी के पदार्पण से प्रसन्न थे। उन्होंने कहा “आज मंगलमय महोत्सव है, हमारा यूनिवर्सिटी आंगन, आप जैसी भगवान महावीर की शिष्या को अपने मध्य पाकर प्रसन्न हैं। आप और आप का शिष्य परिवार हमें साक्षात् देवीय लगती हैं। आप व आप की शिष्या हर समय जप, तप, ध्यान में लीन रहती हैं। आप का अनुशासन प्रिय जीवन संयम की जीती जागती उदाहरण है। आप के हमारे यहां पधारने अभिनंदन करते हैं और इच्छा करते हैं कि भविष्य में भी आप हमारे यहां पधारते रहोगे। सभी का धन्यवाद डा० भट्ट ने किया। इस भाषण माला में वहुत से विद्वानों के दर्शन करने का सौभाग्य मिला, इन विद्वानों में जर्मन की प्रो० मेटे का प्रवचन प्रसिद्ध है। उन्होंने सूत्रकृतांग सूत्र के वीरथूई पर अपना प्रवचन दिया. अपने प्रवचन में आप ने फुरमाया “आर्य सुधर्मा कृत महावीर स्तुति मात्र गुरू वन्दना ही नहीं, यह स्तुति संसार की प्रथम कविता है। जिस में छंद, अलंकार, विशेषणों का शुद्ध प्रयोग प्रथम वार किया गया है। श्रीमती मेटे के वाक्य का कई विद्वानों ने बुरा मनाया। उन विद्वानों की मान्यता थी कि वेद संसार की प्रथम कविता हैं। वह प्रारम्भ से गाकर पढ़े जाते रहे हैं। सो आप का कथन ठीक प्रतीत नहीं होता । डा. मेटे का उत्तर
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