________________
-स्था की ओर बढ़ते कदा - फिर श्री ज्ञान मुनि जी महाराज का भाषण शुरू हुआ। यह भाषण कम प्रवचन ज्यादा था। अपनी सरल भाषा में श्री ज्ञान मुनि जी महाराज ने अपने गुरू का गुणगान किया। उन्होंने अपने जीवन में चमत्कारी घटनाओं का वर्णन किया। श्री ज्ञान मुनि जी महाराज ने आचार्य श्री के अतिरिक्त जैन धर्म के विभिन्न आगमों पर प्रकाश डाला। प्रवचन के अंत में उन्होंने विद्वानों व विद्यार्थीयों की जिज्ञासाओं यथोचित समाधान किया। फिर धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत कर मुनि जी का श्रोताओं की ओर से धन्यवाद किया गया।
इस प्रकार भाषण माला का प्रथम भाषण संपन्न हुआ। इसके बाद इस भाषण माला को देश में ही नहीं, विदेशी विद्वान भी बुलाए गए। भारत के विद्वानों में आचार्य तुलसी का मंगलमय प्रवेश अपने आप में अनोखी घटना था। ४० साधु साध्वीयां युनिवर्सिटी कैम्पस में फैल गए सारे उत्तर भारत के श्रद्धालु इस समारोह में पधारे थे। यह समारोह भव्य था।
दूसरा मंगलमय प्रवचन गुरूणी उपप्रवर्तनी श्री स्वर्णकांता जी महाराज का था। उसी दिन उन का परिचय हिन्दी पंजाबी में प्रकाशित किया गया। फिर साध्वी जी को जिनशासन प्रभाविका पद से विभूषित किया गया। सम्मान के रूप में एक शाल समर्पित किया गया। डा० हरमिंद्र सिंह कोहली ने अभिनंदन पत्र जैन शोध विभाग पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला की ओर से पढ़ा। यह किसी जैन साध्वी को प्रथम निमंत्रण था। इस से पहले कभी यूनिवर्सिटी ने ना तो किसी साध्वी को कभी भाषण के लिए निमंत्रण दिया, न ही सम्मानित किया गया। यह साध्वी जी के जीवन की महत्वपूर्ण घटना थी। इस अवसर पर डा० एच.एस. कोहली, डा० धर्म सिंह व डा० सज्जन सिंह विशेष रूप से पधारे। जैन साध्वी
102