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- - आस्था की ओर बढ़ते कदम पहला अवसर था जब इतने विद्वाानें के दर्शन व उन्हें सुनने का सौभग्य मिला। डा० भट्ट जितना समय इस चेयर पर रहे, सारी व्यवस्था ठीक चली। उनके वापिस जर्मन लौटने पर अभी यह चेयर खाली है। जैनोलिजकल रिसर्च कौंसिल की स्थापना :
२५००वें महावीर निर्वाण शताब्दी के शुभ अवसर पर मेरे मन में एक ख्याल आया कि जैन विद्वानों की एक भारतीय संस्था का निर्माण हो, जो पसी संपर्क का माध्यम वने। जैन शोध के कार्य की सूचना का आदान प्रदान करे। इसी बात को ध्यान में रख कर गुरूणी साध्वी स्वर्णकांता जी महाराज की प्रेरणा से इस कौंसिल की स्थापना की गई। इस में जैन विद्वानों को ही शामिल किया जाता। हमारी यह कोशिश को वहुत कम सफलता मिली। इस कार्य जिस ढंग से हम चाहते थे आगे न बढ़ सका। यह एक कटु अनुभव था। पर इस संस्था के माध्यम से हम विद्वानों से जुड़ गए। पत्र व्यवहार वना। हम इस का उपयोग पंजावी जैन साहित्य लिए भी करना चाहते थे, जो प्रायः असम्भव था। क्योंकि जैन विद्वान इस क्षेत्रिय भाषा से अपरिचित थे। मैं इस का डायरैक्टर वना। इस संस्था के स्व० सेठ भोज राज जैन संरक्षक बने। इस के सचिव मेरे धर्मभ्राता रविन्द्र जैन थे। सारे भारत में हर भाषा में जैन साहित्य उपलब्ध है पर पंजावी में किसी ने कलम नही उठाई। हमें साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज की बलवती प्रेरणा, सहयोग संरक्षण सतत् मिलता रहा। साध्वी श्री पंजावी साहित्य की उपयोगिता को अच्छी तरह पहचानती थी। वह ग्रामों में धर्म प्रचार करने वाली साध्वी थी। हमारे हर कार्य में हमारा उत्साह बढ़ाती __ थी। उनके उपकार मेरे जीवन आचार्य तुलसी के शिष्य
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