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=ામ્યા છો તોર વયને રુભ थे। डा० भट्ट का पहला समारोह था। उनके आने के बाद इस चेयर को उन्होंने गुरू गोविन्द सिंह भवन से स्वतंत्र विभाग वना दिया। उन्होंने इस भवन का नाम "महावीर चेयर फार जैन स्टडीज' रखा। वह इस संस्था के प्रथम निर्देशक वने। डा० भट्ट के पास पुस्तकों की अथाह सम्पदा थी। भारतीय अंतर्राष्ट्रीय विद्वानों से उनका अच्छा परिचय था। अनेकों विदेशी विद्वान उनके मित्र थे। अनेकों शोध पत्र पत्रिकाओं में अनके शोध निबंध व समीक्षाएं प्रकाशित होती रहती हैं। अनेकों देशों में भारतीय व जैन विषयों पर उनके प्रवचन होते हैं। उनकी प्रेरणा से हमारी समिति ने अनेक कार्य किए हैं। इस में साहित्य की दृष्टि से युनिवर्सिटी में लाइब्रेरी की स्थापना प्रमुख थी।
इसी समारोह में भगवान महावीर की अंतिम देशना की उत्राध्ययन का विमोचन माननीय राज्यपाल ने अपने कर कमलों से किया इस ग्रंथ का पंजाबी अनुवाद की प्रेरणा हमें डा० जोशी की कृति धम्मपद से मिली थी। दोनों ग्रंथ श्रमण संस्कृति के पावन ग्रंथ थे। इस ग्रंथ में जो श्रम हम ने किया वह महत्त्वपूर्ण था परन्तु इस ग्रंथ के हर पृष्ट को श्रमण उपाध्याय श्री फूल चंद जी महाराज ने पंडित तिलकधर शास्त्री से सुना था। जरूरत अनुसार श्रमण जी ने संशोधन किया। यह शास्त्र पंडित अर्धमागधी प्राकृत से अनुवादित प्रथम ग्रंथ था, जिस के प्रकाशन के वाद हम पंजावी भाषा के प्रथम अनुवादक, संपादक, टीकाकार वन गए। हमारे से पहले यह सौभाग्य किसी साधु या श्रावक को प्राप्त नहीं हुआ था। पंजाबी विश्वविद्यालय में किसी जैन शास्त्र का यह प्रथम विमोचन था। इस संसार में अर्ध मागधी भाषा के सव रूप आयु के अनुवादक थे। यह समारोह जैन चेयर के उद्घाटन पर ही हुआ। जिसे कई