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शेष रही, तब अमावस होने वाली थी, उसी समय भगवान् महावीर निर्वाण पधारे थे। उसी दिन संध्या के समय गौतम गणधर को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः देवों ने आकर उनके ज्ञान कल्याणक की पूजा की एवं उत्सव किया था। उसी दिन से दीपावली त्यौहार मानाया जा रहा है। केवली गौतम गणधर ने 12 वर्ष तक धर्म की देशना दी। तदुपरान्त उनको निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।
गौतम गणधर के निर्वाण गमन पश्चात सुधर्माचार्य को केवलज्ञान प्रकट हुआ और केवलज्ञान पश्चात् उन्होंने 12 वर्ष पर्यन्त धर्म की देशना दी, तदुपरान्त निर्वाण पद प्राप्त किया।
सुधर्माचार्य के पश्चात् जम्बू स्वामी को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और उन्होंने 38 वर्ष पर्यन्त धर्मोपदेश रूपी अमृत की वर्षा से भव्य प्राणियों को संतुष्ट किया। श्री महावीर भगवान् के मोक्ष जाने के पश्चात् भी 62 वर्ष तक केवली विराजमान रहे।
आगे श्रुतकेवलियों का समय आया जिसमें 1. विष्णुनन्दी 2. नन्दिमित्र 3. अपराजित 4. गोवर्धन और 5. भद्रबाहु इस प्रकार पाँच श्रुतकेवली हुए। इनका समय भी 100 वर्ष तक चलता रहा। इनके बाद 123 वर्ष में 5 मुनिराज ग्यारह-ग्यारह अंगधारी हुये। आगे जो क्षीण अंगधारी मुनि हुये उनके द्वारा ६ गर्मोपदेश होता रहा। इनके बाद 183 वर्ष में 11 मुनिराज दश-दश पूर्व के पाठी हुये। श्री अर्हद्वलि एक अंग के धारी थे। उनके बाद श्रीमाघनन्दी क्षीण एक अंग के धारी हुये।
__ जिस समय माघनन्दि मुनिराज का देहावसान हुआ था, उस समय भगवान् महावीर स्वामी को मोक्ष पधारे 582 वर्ष व्यतीत हो चुके थे। 582 वर्षों में उक्त प्रकार से ज्ञान के धारी आचार्य हुए।
__ आचार्य माघनन्दी मुनिराज के जीवन की घटना है। आचार्यश्री एक समय गोचरी के लिये जा रहे थे। मार्ग में एक कुंभकार की पुत्री बड़ी भारी वर्षा की संभावना से आँवा में रखे हुए बर्तनों के गल जाने की आशंका से रो रही थी। मुनिराज ने उसके हृदय की बात को समझ कर आँवे की परिक्रमा दे दी। परिक्रमा में वह कन्या भी पीछे-पीछे रही। कुछ देर बाद बड़ी जोर से वर्षा हुई,
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