________________
राजा को नमस्कार किया। राजा ने आदेश दिया कि सभी अपनी-अपनी तलवार निकालकर दिखायें। सबने अपनी-अपनी तलवार दिखाई, तब राजा ने सोमशर्मा मंत्री से कहा कि तुम भी अपनी तलवार म्यान में से निकालकर दिखाओ। मंत्री सोमशर्मा ने म्यान सहित तलवार राजा के सामने रख दी और कहा-हे राजन्। आप स्वयं निकालकर देख लें। तलवार सूर्य की किरणों के समान चमकती हुई लोहे की निकली। तब राजा ने तीखी नजरों से चुगलखोर की तरफ देखा । मंत्री समझ गया और बोला–महाराज! इसमें इसका दोष नहीं है, यह तलवार काष्ठ की ही है। राजा बोला-कैसे? मंत्री ने कहा कि आप तलवार म्यान में डालकर मुझे दें। राजा से तलवार लेकर मंत्री ने म्यान से तलवार निकाली, तब वह काष्ठ की निकली। यह देख राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा-यह कैसे हुआ? मंत्री ने कहा-यह नियम का प्रभाव है।
हम संयम के अर्थात् मोक्ष के मार्ग पर स्वयं चलें और इस मार्ग की महिमा का अहसास दूसरों को भी कराएँ, यही मार्गप्रभावना है।
जो अपने संयम का दृढ़ता से पालन करते हैं, उनको देखकर सभी को धर्म की बड़ी महिमा आती है कि देखो, जैनियों का धर्म! ये जैनी प्राण जाने पर भी अभक्ष्यभक्षण नहीं करते हैं, तीव्र रोग/वेदना होने पर भी रात्रि में दवाई-जलादि भी नहीं पीते हैं धन-अभिमानादि नष्ट होने पर भी असत्य वचनादि नहीं बोलते हैं, महान आपदा आने पर भी पराये धन में चित् नहीं चलाते हैं, अपने प्राण जाने पर भी अन्य जीव का घात नहीं करते हैं। शील की दृढ़ता, परिग्रहपरिमाणता परम संतोष धारण करने से आत्मा की प्रभावना होती है तथा मार्ग की भी प्रभावना होती है।
अतः समस्त धन चले जाने पर भी व प्राण चले जाने पर भी जो अपने निमित्त से धर्म की निन्दा-हास्य कभी नहीं कराता, उसके सन्मार्ग प्रभावना अंग होता है। इस प्रभावना की महिमा का करोड़ जिह्वाओं द्वारा
07840