________________
पिऊँगा। उस बेटे ने मान लिया कि मैं मानरोवर का ही पानी पिऊँगा। माँ
आशीष दिया - जाओ बेटा! पानी पी आओ, लेकिन कुल की आन-बान-शान का ध्यान रखना। माँ ने आशीश दिया और धीरे से बोल दिया कि मेरे सुत! यदि तुम चातक— वंश के हो, तो तुम किसी भी जलाशय का पानी नहीं पिओगे ।
जैसे ही पुत्र ने गमन किया, संध्या बेला हो जाती है, वह एक वृक्ष पर जाकर रुक जाता है। वहाँ एक दृश्य देखा। उस वृक्ष के नीचे एक वृद्ध बाबाजी पड़े हुए हैं। गरीब परिवार था। बेटा प्रातः काल कमाने गया होगा। लेकिन संध्या को जब वापस आता है तो खाली हाथ पहुँचा । पिता पूछ रहा था- बेटे! आज तुम कमाकर क्या लाये हो? पुत्र कहता हैपिताश्री! क्षमा करना । आज मेरा दिन ऐसा ही खाली निकल गया, क्योंकि रास्ते में मुझे रुपयों से भरी हुई बहुत बड़ी थैली मिली। तब पिता को थोड़ा धक्का - सा लगा। थैली मिली ? यहाँ कौंड़ी भी नहीं है। मेरा एक पैसा गिर जाता है, तब तीव्र वेदना होती है, तो जिसकी थैली -की- थैली गिर गई हो, उसको कितनी पीड़ा होगी? मैंने खोज करना प्रारंभ किया, और पिताजी! एक घुड़सवार की थी, वह थैली उसे प्राप्त कर उसने मुझे पैसे देना चाहे और कहा कि, भाई! आपने मेरी थैली वापस की, इसलिए आधे पैसे आप ले लीजिये । 'बेटा! क्या तूने पैसे ले लिये? नहीं, पिताजी! मैंने उससे कहा– यदि मुझे पैसे चाहिये होते, तब मेरे पास तो यह पूरी थैली थी। अतः मुझे पैसे नहीं चाहिये। मेरे पिता ने मुझे ईमान दिया है, बस, मैं ईमान का पानी पीकर सो जाऊँगा, और पानी नहीं मिलेगा तो णमोकार मंत्र का स्मरण कर मृत्यु को प्राप्त कर लूँगा, लेकिन किसी के खून-पसीने की वस्तु को नहीं लूँगा । और जैसे ही बेटे ने कहा, वह अस्सी साल का पिता चारपाई से उछलकर नीचे आ गया और बेटे को सीने से लगाकर बोला- बेटे! आज तूने चातक - पक्षी के समान मेरे कुल की
782 2