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हम विचार करें कि हमारा जीवन सुबह से शाम तक किस महत्वपूर्ण काम में व्यस्त रहता है? क्या अपने सुख-सुविधा की सामग्री जुटाना महत्त्वपूर्ण है?
वर्णीजी के जीवन की घटना है। वे नैनागिरि तीर्थ पर वंदना करने जा रहे थे। उन दिनों पक्की सड़क नहीं थी । धूल भरे रास्ते में ताँगे से जाना पड़ता था। एक ताँगे में बैठकर वर्णीजी जा रहे थे। रास्ता लम्बा था । ताँगा धीरे-धीरे जा रहा था । वर्णीजी ने सोचा कि गन्तव्य तक पहुँचने में तो देर हो जाएगी, चार पेड़े (मावा की मिठाई) पास में है, रास्ते में ही खाकर निवृत्त हो जाना चाहिए, फिर शाम हो जाएगी तो भूखे रहना पड़ेगा। तो वर्णीजी ने चार में से दो पेड़े निकालकर ताँगे वाले को खाने के लिए दे दिये। ताँगे वाला कृतज्ञता से भर गया। अभी थोड़े ही दूर चले थे कि पैदल जाती हुई चार सवारियाँ मिल गईं। वर्णीजी ने बड़े दया भाव से कहा कि भइया, इन्हें भी बिठा लो । चार सवारियाँ और बैठ गईं । ताँगा अपनी चाल से धीरे-धीरे चल रहा था । उन चारों सवारियों ने हड़बड़ी मचाई। ताँगे वाले से बार-बार कहना शुरू किया कि जरा जल्दी चलाओ । आप देख रहे हैं इस संसार की दशा ? जो थोड़ी देर पहले पैदल जा रहे थे, जिन्हें कृपा करके ताँगे में बैठा लिया, अब वही लोग बड़े अधिकारपूर्वक ताँगे वाले को जल्दी चलने के लिए कह रहे हैं। सिर्फ अपना जीवन, अपनी सुख-सुविधा का ही जिन्हें ख्याल है और जिनके जीवन में दूसरे का जरा भी ख्याल नहीं है, दूसरे की सुविधा - असुविधा का जरा भी विचार नहीं है, बताइए, उसका जीवन क्या सार्थक माना जाएगा? कदापि नहीं । ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में और चाहे जो भी प्राप्त कर ले, लेकिन सच्चा सुख, शान्ति और मुक्ति को प्राप्त नहीं कर पाएगा।
अचानक तेजी से हवा आई और धूल उड़ने लगी । वर्णीजी को थोड़ी परेशानी महसूस हुई। ताँगे वाले ने ताँगा थोड़ा तेज रफ्तार से चलाना
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